नाहन (शैलेंद्र कालरा): इतिहास 200 साल पुराना है, जब गोरखों ने सिरमौर रियासत पर हमला किया था। हालांकि 1809 में नेपालियों ने मौजूदा हिमाचल के अधिकतर हिस्सों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन असल जंग दिसंबर 1814 में शुरू हुई। मई 1815 में भारतीय-ब्रिटिश सेना के साथ संधि के साथ खत्म हुई। धारटीधार में जमटा के नजदीक स्थित जैतक किला भी इस युद्ध का गवाह बना था।
देश के आजाद होने के बाद सिरमौर राइफल, ब्रिटिशर के हिस्से आई थी। लिहाजा अंग्रेज अपने साथ सिरमौर राइफल बटालियन को साथ ले गए। कंवर अजय बहादुर सिंह के मुताबिक इंगलैंड में आज भी सिरमौर राइफल बटालियन तैनात है। इसी बटालियन से रिटायर्ड 22 फौजी नेपाल के पोखरा में अब सैटल हैं, जो आज 200 साल पूरे होने पर यहां अपने परिवारों समेत पहुंचे। इस दौरान जैतक किले का भी दौरा किया।
सिरमौर राइफल के नेपाल से पहुंचे सैन्य अधिकारी।कंवर अजय बहादुर सिंह के मुताबिक गोरखा रेजीमेंट दो हिस्सों में विभाजित हुई थी। एक भारत में रही, जबकि दूसरी इंगलैंड चली गई थी। 1815 में संधि के बाद गोरखों को इंडियन-ब्रिटिश आर्मी का ही हिस्सा बना लिया गया था। उन्होंने बताया कि आज पहुंचे दल ने जैतक के बाद देहरादून का रुख किया है, जहां पर सिरमौर द्वार पर 200 साल पुरानी यादें ताजा होंगी। साथ ही पुराने अनुभव भी साझा किए जा रहे हैं।
सनद रहे कि गोरखा युद्ध में मारे गए ब्रिटिश सेना के सैनिकों की कब्रगाह आज भी शहर के पक्का तालाब के किनारे स्थित है। यह अलग बात है कि इसकी हालत काफी बदत्तर है।
कंवर अजय बहाुदर सिंह को दिए गए मैडल की खूबी
यह मैडल उन लोगों को दिया जा रहा है, जिनका पूर्वजों का संबंध युद्ध से रहा। चूंकि रेजीमेंट का असल नाम सिरमूर राइफल्स है। इस कारण यहां पहुंचे सेवानिवृत सैन्य अधिकारियों ने स्थापना के 200 साल पूरे होने पर इसे कंवर अजय बहादुर सिंह को भेंट किया। इसे काठमांडू में नेपाल के नामी उस क्राफ्टसमैन द्वारा बनाया गया है, जो नेपाल आर्मी के लिए कार्य करता है। इसका रिबन यूके में बना है। 32एमएम चौड़े रिबन का रंग व डिजाइन रेजीमेंट के ध्वज की तरह है। जिस पर दो खुखरियां बनी हैं। “The Sirmoor Rifles Bicentennial Commemorative Medal” 200 साल पुराने युद्ध के उन पलों की स्मृति बन रहा है, जो साबित करता है कि उस वक्त की कड़वाहट उसी वक्त खत्म हो गई थी।