रेणु कश्यप/नाहन
1621 में स्थापित शहर की शान “लिटन मैमोरियल है, इस पर कोई अतिश्योक्ति व्यक्त नहीं कर सकता। अगर इसकी नींव कमजोर पडऩे लगे तो हर कोई आहत होगा। बाहर से चमका-धमका दिखने वाला लिटन मैमोरयल दरअसल भीतर से खोखला हो रहा है। करीब दो साल पहले नगर परिषद ने खस्ताहालत को लेकर पुरातत्व विभाग को चिट्ठी लिखकर यह पूछा था कि इसकी मरम्मत किस तरीके से होनी चाहिए। मगर कोई ठोस नतीजा नजर नहीं आया है।
मैमोरियल की विशाल घड़ी आज भी कौतूहल का सबब बन जाती है। इसकी भीतरी संरचना भी अपने आप में एक इतिहास है, जो आज की पीढ़ी में नहीं दोहराया जा सकता।
file Photosनगर परिषद ने पहली बार मैमोरियल की दीवारों व छत की दरारों को भरने की कोशिश की। हालांकि सही तरीके से मैमोरियल के बनने की तारीख नहीं मिल पाई है, लेकिन यह साफ है कि रियासत के वक्त, जब वायसरॉय ऑफ इंडिया लॉर्ड लिटन यहां आए थे, तो उनके स्वागत के लिए शासक ने इसका निर्माण करवाया था। लॉर्ड लिटन देश में 1876 से 1880 के बीच वायसरॉय रहे, यानि लिटन मैमोरियल का निर्माण इसी बीच हुआ होगा।
क्या है भीतरी संरचना?
भीतर की संरचना में भी गजब का आर्किटेक्ट है। घुमावदार करीब 46 सीढिय़ां चढक़र ऊपर पहुंचा जाता है। इसकी खास बात यह है कि उतरते समय व्यक्ति चाहे जितना भी लंबा हो, सिर नहीं टकराता है। घंटाघर के बेस पर पहुंचने पर पता चलता है कि इस इमारत की कितनी खूबियां हैं। इसकी मेनटेनेंस करने वाले व्यक्ति ने कहा कि हैरानी इस बात पर होती है कि टनों भारी सामग्री को इतनी ऊपर कैसे पहुंचाया गया होगा। गरारी पर वजन डालकर इस मैमोरियल पर लगी घडिय़ों की सूईयां चलती हैं।