हमीरपुर (एमबीएम न्यूज) : अगर आपको ध्यान हो अमिताभ बच्चन की फिल्म लावारिस का ये गीत जिसका कोई नहीं होता उसका खुदा होता है। तो इंसान के बारे में जानकर आपको याद आ जाएगा। एमबीएम न्यूज जिस इंसान के बारे में आज आपको बताने जा रहा है वो भी लावारिस लाशों के लिए खुदा से कम नहीं है। हमीरपुर के समाजसेवी शांतनु कुमार करीब डेढ दशक से ऐसा काम कर रहे हैं। शांतनु लावारिस लाशों को अपने कंधों पर उठाकर न केवल उनका अंतिम संस्कार करवाते हैं बल्कि अपने खर्चें पर हरिद्वार जाकर अस्थियां को रीति-रिवाज के साथ गंगा में विसर्जित करते हैं। शांतनु ने बताया कि अब तक वो करीब 486 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं।
समाज सेवा के लिए मिला सम्मान
शांतनु को समाज सेवा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए गार्ड फेयर ब्रेबरी अवार्ड से भी तत्कालीन राज्यपाल सदाशिव कोकजे द्वारा सम्मानित किया गया था। 2012 में हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा हिमाचल गौरव अवार्ड से नवाजा गया। इसके साथ ही कई समाज सेवी संस्थाओं के द्वारा भी शांतनु को सम्मानित किया है।
एक छोटे से कपड़े की रेहडी लगाने वाले शांतनु ने इनाम में मिली हजारों रुपये की राशि को भी अपने पास नहीं रखा और उसे भी चैरिटी में दान कर दिया। शांतनु कुमार का कहना है कि समाज सेवा करके अलग सी अनुभूति होती है और इस काम के लिए मदर टेरेसा को प्रेरणा स्त्रोत मानते हैं।
समाजसेवा के लिए नहीं की शादी….
शांतनु कुमार ने समाज सेवा के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया। जब भी उन्हें पता चलता है कि कहीं पर लावारिस शव पड़ी है तो वह अपने मकसद के लिए निकल पड़ते हैं और शव का अंतिम संस्कार करवाने के बाद हरिद्वार में अस्थियां विसर्जन करके वापस लौटते हैं।
शांतनु मूल रूप से बंगाल के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि वो सन 1990 से समाज सेवा शुरू की। वो 1980 में में हमीरपुर आए। उन्होंने बताया कि उनके अंदर समाज सेवा की भावना हमीरपुर में हुए एक हादसे के बाद शुरू हुई थी।