सोलन, 24 मई : हिमाचल प्रदेश की कुनिहार घाटी को कुदरत ने जंगली फल “शहतूत” (Mulberry) की विशेष सौगात से नवाजा है। खास बात यह भी ये है कि यहां की पहचान राष्ट्रीय पक्षी (National Bird) मोर के लिए भी होती है। इन दिनों घाटी में पेड़ शहतूत के फल से लकदक है। लिहाजा, औषधीय गुणों (Medicinal Properties) से भरपूर फल के शौकीनों की यहां खूब मौज हो रही है। चूंकि ये शीघ्र नष्ट हो जाता है। लिहाजा बाजार में इसकी उपलब्धता न के बराबर ही होती है। यहां छंगाई की वजह से पेड़ों की ऊंचाई भी सीमित है, इसी कारण मजे से शहतूत को तोड़कर स्वाद लिया जाता है। इन दिनों बच्चे शहतूत के पेड़ों के इर्द-गिर्द मंडराते नजर आते हैं।
ग्रामीणों की मानें तो पेड़ से तोड़कर एक टहनी भी लगा दी जाए तो वो भी कुछ समय में एक पेड़ का रूप ले लेती है। देश के कई हिस्सों में इस पेड़ को “कल्प वृक्ष” (Tree of Heaven) के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि पौधे का हरेक हिस्सा उपयोग में आता हैं। टुकाडी के रहने वाले नरेश तनवार की मानें तो पेड़ के पत्ते पशुओं का पसंदीदा आहार हैं, पत्तों के गुणों की वजह से दूध का स्वाद भी बेमिसाल हो जाता है। उनका कहना था कि निजी खेतों के पेड़ों से छंगाई की जाती है, ताकि पशुओ को चारा मिल सके।
बता दें कि रेशम के कीड़ों (Silkworms) के लिए शहतूत की पत्तियां ही भोजन होती हैं। रेशम उत्पादन करने वाले शहतूत के पेड़ों को उगाते हैं, लेकिन यहां तो कुदरत ने ही इनायत बक्शी है। दीगर है कि घाटी खासकर टुकाडी में भोर फटते ही पक्षियों की चहचहाट पक्षी प्रेमियों को दीवाना कर सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां के बाशिंदों ने कुदरत से छेड़छाड़ नहीं की है।
हिमाचल की ताजा खबरों के लिए ज्वाइन करें हमारा WhatsApp चैनल
उधर, जहां तक मोर (Peafowl) की बात की जाए तो इसकी संख्या को लेकर स्पष्ट आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के अनुमान के मुताबिक कुनिहार वैली (Kunihar Valley) में मोरों की संख्या 5 से 7 हजार के बीच हो सकती है। खास बात यह है कि ये मोर रात भर बोलकर जंगल में अपनी मौजूदगी का अहसास करवाते हैं। बेशक ही स्थानीय बाशिंदों लिए इनकी मौजूदगी सामान्य सी बात हो, लेकिन बाहर से आने वालो के लिए बेहद ही रोचक अनुभव होता है।
स्थानीय ग्रामीणों के मुताबिक मोरों के समूह चीड़ के ऊंचे दरख्तों पर रात गुजारते हैं, ताकि जंगली जानवर हमला न कर सके। तेंदुए के लिए भी चीड़ के सीधे पेड़ पर चढ़ना कठिन होता है। उल्लेखनीय है कि विश्व स्तर पर संकटग्रस्त पक्षी ग्रे-क्राउन्ड प्रिनिया (Grey-Crowned Prinia) को राज्य में पहली बार कुनिहार तहसील के ऊपरी सकोर गांव में करीब तीन साल पहले देखा गया था।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने “ग्रे क्राउन प्रिनिया” बर्ड को विलुप्त हो रही प्रजातियों (Vulnerable Species) की सूची में डाला हुआ है। इसी कारण हिमाचल में इसके मिलने से पक्षी प्रेमियों (Birds Lovers) में खासा उत्साह है।
@R1