शिमला, 01 अप्रैल : संस्कृत विषय को तीसरी से पांचवीं कक्षा के छात्रों के लिए बंद करना नैतिक एवं बौद्धिक रूप से कमजोर करना है। हिमाचल राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद ने इस सत्र से प्राथमिक कक्षाओं में संस्कृत विषय को हटाने का विरोध किया है। इस बारे में परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. मनोज शैल ने कहा किसंस्कृत विषय को बंद करने का निर्णय तर्कसंगत नहीं है। प्रदेश में दूसरी राजभाषा संस्कृत है तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी संस्कृत एवं संस्कृति के अध्ययन पर बल दिया गया है।
विभाग ने टीचर न मिलने का बहाना लगाया है। क्या विभाग ने इसके लिए कोई प्रयास किया, जिसके फलस्वरूप टीचर नहीं मिले और विषय को बंद करना पड़ा। इसके साथ क्या प्राथमिक पाठशालाओं में हर विषय के लिए अलग से टीचर है, जो संस्कृत के टीचर न मिलने की बात की जा रही है।
परिषद् के प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि कक्षा तीसरी से पांचवीं तक संस्कृत का जो पाठ्यक्रम बना है, वह बिल्कुल सरल है। इसमें परीक्षा की व्यवस्था भी केवल पांचवीं कक्षा में है तीसरी और चौथी कक्षा में तो परीक्षा भी नहीं है। जो टीचर प्राथमिक पाठशाला में हिंदी पढ़ा सकता है, वह सहजता से संस्कृत भी पढ़ा सकता है और एक साल तक शिक्षकों ने इसे पढ़ाया भी है। यदि फिर भी ऐसी समस्या है तो अब तो सरकार ने क्लस्टर सिस्टम लागू कर दिया है तो साथ लगते विद्यालयों के संस्कृत शिक्षक भी इसे पढ़ा सकते हैं।
इस प्रकार से देवभूमि हिमाचल में संस्कृत के साथ ऐसा व्यवहार ठीक नहीं है। इसके लिए शिक्षकों की कार्यशाला लगाकर भी प्रशिक्षण दिया जा सकता है जैसे अन्य विषयों का दिया जा रहा है। लेकिन, सरकार एवं विभाग ने विना तथ्य के कारण प्रस्तुत कर यही मंशा जाहिर की है कि वह इसे पढ़ाना ही नहीं चाहते। प्रदेश में हजारों संस्कृत के शिक्षक हैं और हजारों शास्त्री उपाधि धारक बेरोजगार हैं फिर टीचर नहीं मिले यह प्रश्न ही तर्कसंगत नहीं है। सरकार को एवं विभाग को इस विषय पर पुनर्विचार करना चाहिए और यथावत संस्कृत विषय को रखना चाहिए।