पांगी, 19 फरवरी : चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी घाटी (Pangi Valley) में 12 दिवसीय जुकारू उत्सव (Jukaroo Festival) के पर्व पर 10वें दिन दशालू मेले (Dashaloo Fair) का आयोजन किया गया। सोमवार को भारी बर्फबारी (Heavy snowfall) के बीच लोगों में काफी उत्साह देखने को मिला। पांगी घाटी में मौजूदा समय में एक फीट के करीब बर्फबारी हुई, लेकिन इसके बावजूद भी लोगों की आस्था कम नहीं हुई। दशालू मेला पांगी घाटी के चार पंचायतों में मनाया जाता है। मिंधल, पुर्थी पंचायत के थांदल गांव, रेई पंचायत व शौर पंचायत में मेला मनाया जाता है।
क्या है दशालू मेले का इतिहास
दशालु मेले पर गांव वासी अपने-अपने घरों में लाल मिट्टी से लिपाई-पुताई करते है और अपनी कुलदेवी के लिए भोग तैयार करके मंदिर जाते हैं। मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद ढोल-नगाड़े के साथ पवित्र पंडाल में मेले का आयोजन किया जाता है।
मेले की विशेष बात यह है कि दसवें दिन मिंधल माता मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है, जिसमें चमत्कार देखने को मिलता है। मेले के दिन मां मिंधल वासनी ठाठडी (चेला) बर्फ के गोले से मंदिर का कपाट खोला जाता है। दशालु मेले के दिन घर का मुख्य सदस्य व गांव वासी मिलकर हाथों में पवित्र पुष्प (जेब्रा) लेकर मेना पंडाल पहुंचते हैं। जहां पर सर्व प्रथम विश्व कल्याण के लिए पूजा अर्चना की जाती है।
मिंधल माता का ठाठड़ी यानी चेला मंदिर से सुई लेने जाता है। हालांकि मिंधल गांव में इस मेले के दिन सुई लेने से पहले बलि प्रथा देने का भी रिवाज था, लेकिन सरकार के आदेशों के बाद अब केवल नारियल व अन्य सामग्री चढ़ाई जाती है। मेले को देखने के लिए घाटी के विभिन्न पंचायतों से लोग आते है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मेले के दिन मिंधल माता का मुख्य ठाठड़ी सुबह करीब 27 किलोमीटर पैदल चलकर मिंधल गांव पहुंचता है। मिंधल माता का मुख्य चेला ठाठड़ी किलाड़ के थमोह निवासी करतार सिंह है, जिन्हे अपने घर में पूजा अर्चना करने के बाद चुन्नी लगाकर व चोणू लगाकर मिंधल मंदिर पहुंचना पड़ता है।