नाहन, 10 फरवरी : “किसी का दर्द हो सके तो ले उधार, जीना इसी का नाम है।” जी हां, समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो दूसरों के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं। हम बात कर रहे हैं शहर के कच्चा टैंक में मोबाइल की दुकान चलाने वाले ‘रामकिशन शर्मा’ जी की। कहने को तो इनकी मोबाइल शाॅप है, लेकिन दिन भर शॉप में उनके पास दर्द से कराह रहे लोगों का तांता लगा रहता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि रामकिशन जी के पास वो अदृश्य मरहम है, जो शायद वैद्य-हकीम या डॉक्टर के पास नहीं मिलता।
रामकिशन शर्मा सुबह से न जाने कितने जाने-अनजान लोगों को राहत की फूंक मार कर दर्द से निजात दिलाते हैं। कहने को तो ये झाड़ फूंक है, लेकिन विश्वास करें तो अचूक दवा भी है। रामकिशन जी को ये विद्या अपने पिता स्वर्गीय ज्योतिराम शर्मा से विरासत में मिली है। मंत्रों की शक्ति से वो चिकन पाॅक्स, ब्रहमसुतली (Herpes), एलर्जी, दांत का दर्द, लंबे समय से चला आ रहा बुखार, सिरदर्द व बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं (धात्री) से जुड़ी समस्याओं का निराकरण करते हैं। साथ ही बवासीर (piles) के मरीजों को भी दवा देते हैं।
धार्मिक प्रवृत्ति के रामकिशन शर्मा कच्चा टैंक स्थित वामन महाराज के मंदिर में नित्य पूजा-अर्चना व कीर्तन में भाग लेते हैं। इसके अलावा चौकी, जागरण इत्यादि भी करवाते हैं। इसके लिए मनमोहन एंड पार्टी के नाम से मंडली का हिस्सा हैं। यही नहीं, रामकिशन शर्मा सामाजिक कार्यों में भी बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों से एकत्रित दान राशि से गरीब परिवारों से संबंध रखने वाली चार लड़कियों की शादी करवा चुके हैं।
चार बेटियों व एक बेटे के पिता रामकिशन का कहना है कि पिता द्वारा सिखाई गई विद्या का प्रयोग जन कल्याण के लिए बीते 12 साल से निशुल्क करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वैसे तो डॉक्टर मरीज का इलाज बेहतर तरीके से करते हैं। कई बार लोगों को दवा से आराम नहीं मिलता, तो उनके पास आते हैं। शहर से ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से लोग उनके पास पहुंचते हैं।
उन्होंने कहा कि ईश्वर का स्मरण कर मंत्र उच्चारण करते हैं, जिससे लोगों को आराम मिलता है। शर्मा ने बताया कि 18 साल पहले उनकी धर्मपत्नी का देहांत हो गया था। बेटियों व बेटे की शादी की और तमाम दायित्व निभा कर जन सेवा को ही जीवन साथी बना लिया।
उन्होंने बताया कि पिता की दी विद्या को उन्होंने बेटे को भी दिया है, ताकि उनकी अनुपस्थति में कोई निराश न लौटे। उन्होंने बताया कि कुुछ लोगों के पास आने-जाने का किराया नहीं होता तो वो खुद आर्थिक मदद भी देते है। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो चलने-फिरने में असमर्थ होते है या दूर से आ नहीं सकते, उनका इलाज फोन पर भी करते हैं।
कुल मिलाकर ये कहा जाता है कि जहां दवा असर नहीं करती, वहां दुआ असर कर जाती है।