नाहन, 26 जुलाई : ऐसा बताते हैं, 70-80 के दशक में शिवालिक पहाड़ियों यूकिलिप्टस (सफेदा) के पेड़ों को व्यापक स्तर पर रोपित किया गया। ये कहना तो मुश्किल है, वन विभाग ने उस समय पेड़ों के दुष्प्रभावों का आकलन किया था या नहीं, हकीकत ये है कि ये पेड़ धरती के पानी को सोख लेते हैं। सिरमौर के नाहन विकास खंड के आम्बवाला इलाके में सफेदे (Eucalyptus) के जंगल जमीनों को बंजर तो कर ही रहे हैं, साथ ही ये जानलेवा भी हो गए हैं।
करीब पांच साल के भीतर पेड़ों को काटा जा सकता है। इसकी लकड़ी का इस्तेमाल प्लाईवुड इंडस्ट्री के अलावा पेपर उद्योग में भी हो सकता है, लेकिन हिमाचल में इन्हें काटना मुमकिन नहीं है। आम्बवाला के ग्रामीणों ने वन मंडल अधिकारी को एक पत्र सौंपा है। इसके मुताबिक आम्बवाला व सैनवाला गांवों में सड़क के दोनों तरफ आरक्षित वन क्षेत्र में असंख्य विशालकाय सफेदे के वृक्ष हैं, जिनका झुकाव सड़क की तरफ हो चुका है। सड़क के एक तरफ घर व दुकानें भी हैं।
आपको बता दें कि चंडीगढ़-देहरादून हाईवे (Chandigarh-Dehradun NH) पर सैनवाला व आम्बवाला के साथ-साथ सफेदे के पेड़ों का जंगल गौशाला के नजदीक तक मौजूद है।
इलाके में बारिश के दौरान महज दो सप्ताह के भीतर ही पांच से ज्यादा पेड़ गिर चुके हैं। ग्रामीणों ने कहा कि गनीमत है कि जानी नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन हर वक्त आशंका बनी रहती है। ग्रामीणों ने वन विभाग से तत्काल ही खतरनाक पेड़ों को कटवाने की मांग की है।
बहरहाल, आम्बवाला व सैनवाला के लोगों द्वारा सफेदे के कटान की मांग किए जाने के बाद बड़ा सवाल ये उठता है कि व्यापक स्तर पर इन जंगलों का कटान क्यों नहीं किया जा रहा, इससे वन विभाग को आमदनी तो होगी ही, साथ ही पौधारोपण के नए विकल्पों को भी तलाशा जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि पेड़ को रोजाना 12 से 18 लीटर पानी व भारी मात्रा में पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। सिंचाई न होने पर जड़ें भू जल को सोखना शुरू कर देती हैं। इससे इलाके का भू गर्भ जलस्तर भी नीचे गिरने की आशंका रहती है।
कुछ राज्यों में सफेदे के पेड़ों के रोपण पर प्रतिबंध पड़ोसी राज्य हरियाणा में सफेदे व पापुलर की खेती तो की जाती है, लेकिन इनका कटान समय पर कर लिया जाता है। कुछ राज्यों ने सफेदे के पेड़ों के रोपण पर प्रतिबंध भी लगाया हुआ है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे पेड़ लगने के बाद मिट्टी दूसरे खेतों के लायक नहीं रहती है।
एक जानकारी के मुताबिक अंग्रेजों ने सफेदे की खेती को दलदली व पानी वाले इलाकों में लगाने का चलन शुरू किया था। लेकिन हिमाचल जैसे राज्य में इन पेड़ों का कोई खास मायने नहीं है। उल्लेखनीय है कि सफेदे के पेड़ (Eucalyptus trees) को नीलगिरी भी कहा जाता है। खेती के लिए दलदली इलाकों में सफेदे के पेड़ का सौदा फायदेमंद हो सकता है। बशर्ते इसका कटान समय पर कर लिया जाए।