नाहन, 27 जून : हिमाचल के बेटे डॉ. अशोक कुमार वर्मा ने अंतरिक्ष विज्ञान (Space Science) में पहाड़ी प्रदेश को समूचे विश्व (World) में गौरवान्वित किया है। इंटरनेशनल एस्ट्रोमिनिकल यूनियन (International Astronomical Union) के वर्किंग ग्रुप स्मॉल बॉडीज नॉमनक्लेचर (Working Group Small Bodies Nomenclature) द्वारा दुनिया के वैज्ञानिकों के नाम पर क्षुद्रग्रहों (asteroids) का नाम रखने का ऐलान किया है। इसमें चार भारतीय भी शामिल हैं।
आईएयू खगोलविदों (IAU astronomers) एक अंतरराष्ट्रीय संघ है, इसका मिशन अनुसंधान, संचार, शिक्षा व विकास सहित खगोल विज्ञान (astronomy) के तमाम पहलुओं को बढ़ावा देना है। संघ द्वारा ही खगोलीय पिंडों (celestial bodies) का नाम निर्दिष्ट किया जाता है।
खास बात ये है कि भारतीय वैज्ञानिकों (Indian Scientists) की सूची में डॉ. अशोक कुमार वर्मा (39) पुत्र जगत राम वर्मा भी शामिल किए गए हैं। अशोक के नाम पर ब्रह्माण्ड (Universe) में क्षुद्रग्रह 28964 (asteroid 28964) का नामकरण किया गया है। माना जा रहा है कि अंतरिक्ष विज्ञान में ये उपलब्धि हासिल करने वाले अशोक वर्मा पहले हिमाचली होंगे।
नाहन में जन्में अशोक ने प्रारंभिक शिक्षा आदर्श विद्या निकेतन स्कूल (AVN School Nahan) से प्राप्त की। इसके बाद जमा दो तक की शिक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय (JNV Nahan) से पूरी की। आईआईटी खड़कपुर (iit kharagpur) से एमटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. अशोक ने फ्रेंच स्पेस एजेंसी फ्रांस से (french space agency france) से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
मौजूदा में नासा के स्पेस फ्लाइट सेंटर (NASA’s Space Flight Center) में तैनाती है। 39 वर्षीय वैज्ञानिक को ये दुर्लभ सम्मान खगोल भौतिकी में उल्लेखनीय योगदान पर मिला है।
सोलन की मीनाक्षी से परिणय सूत्र में बंधे डॉ. अशोक एक बेटा-बेटी के पिता है। परिवार कैलिफोर्निया (California) में ही सेटल है। पिता जगत राम वर्मा सहकारी सभाएं व पंजीयक विभाग से निरीक्षक के पद से रिटायर हुए हैं। जबकि माता शकुंतला वर्मा गृहिणी है। वैसे परिवार मूलतः कसौली के समीप से ताल्लुक रखता है, लेकिन अरसे से नाहन व पांवटा साहिब में ही सेटल है। डॉ. अशोक की बड़ी बेटी का जन्म भी नाहन में हुआ।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में डॉ. अशोक के बड़े भाई सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि समूचा परिवार गौरव महसूस कर रहा है। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने 30 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय क्षुद्र ग्रह दिवस’ (International Asteroid Day) मनाने की घोषणा भी की हुई है, ताकि क्षुद्र ग्रहों के बारे में लोगों को शिक्षित किया जा सके।
दुर्लभ उपलब्धि हासिल करने वालों में दो वैज्ञानिक गुजरात के रहने वाले हैं। इसके अलावा एक वैज्ञानिक मलयाली है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि चार भारतीयों (Indians) का चयन इस बात को भी इंगित करता है कि भारत खगोल विज्ञान में प्रगति कर रहा है।
ये खास बातें…
क्षुद्रग्रह खगोलीय पिंड होते हैं, जो ब्रह्माण्ड में विचरण करते रहते हैं। आकार में ग्रहों से छोटे, लेकिन उल्का पिंडों (Shooting Stars) से बड़े होते हैं। पहले क्षुद्रग्रह सेरेस (asteroid ceres) को 1819 में खोजा गया था। क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से खनिज व चट्टान से बना होता है।
ये उपलब्धि हासिल करने के बाद डॉ. वर्मा भी खगोल भौतिकी (astrophysics) में भारत की शक्ति के प्रतिनिधि के रूप में गर्व से खड़े हुए हैं। हालांकि, उनके विशिष्ट योगदान का उल्लेख आईएयू (IAU) द्वारा फिलहाल नहीं किया गया है, लेकिन प्रतिष्ठित सूची में नाम शामिल होना ये साफ दर्शाता है कि डॉ. वर्मा ने नासा में असाधारण उपलब्धियां प्राप्त की हैं।
डॉ. वर्मा को एस्ट्रो डायन मिक्स रेडियो साईंस प्रोग्रामिंग लैंग्वेज (Radio Science) व शेल स्क्रिप्टिंग (shell scripting) में महारत हासिल है। डॉ. वर्मा की रिसर्च से जुड़े 23 पेपर प्रकाशित हो चुके हैं। 323 प्रशस्ति पत्र प्राप्त कर चुके हैं। खगोलविद डॉ. अशोक वर्मा की बचपन से ही ब्रह्माण्ड को लेकर खासी जिज्ञासा रहती थी।
2015 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) विजेता मलाला के नाम पर भी क्षुद्रग्रह का नाम रखा गया था। क्षुद्रग्रह हमारे सौरमंडल का एक हिस्सा है, जो मंगल (Mars) व बृहस्पति (Jupiter) ग्रहों की कक्षाओं के बीच स्थित होते हैंं। हजारों-लाखों क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं।