धर्मशाला (एमबीएम न्यूज़) : “किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार…जीना इसी का नाम है”
यह गीत स्लेट गोदाम के रजनीकांत व उनके परिवार पर सटीक बैठता है। हफ्ता-दस दिन पहले की घटना है, सवेरे के कोई 8 बजे होंगे, स्लेट गोदाम में जब राह चलते रजनीकांत को किसी ने बताया ‘कोई साइकलिस्ट गिर पड़ा है, काफी चोट आई लगती है’, वे बेसाख्ता सहायता के लिए दौड़ आए थे। जब अधिकतर लोग सिर्फ तमाशबीन बनकर लापरवाही से घटना एवं दर्द में कराहते चोटिल व्यक्ति को नजरअंदाज कर रहे थे, तब रजनीकांत आगे बढ़े और उस घायल शख्स को अपने घर ले आए।
रजनीकांत और उनके परिजन मदद का हाथ बढ़ाते समय इस बात से अनभिज्ञ थे कि वे साइकिल के हादसे में घायल हुए जिस व्यक्ति की मरहम पट्टी कर रहे हैं, वे कोई और नहीं बल्कि कांगड़ा के जिलाधीश रितेश चौहान हैं।
वे तो बस मानवीय संवेदना और इंसानियत के नाते मुश्किल में नजर आ रहे एक व्यक्ति की मदद कर रहे थे….उदारतापूर्वक, निस्वार्थ भाव से।
बीती शाम जिलाधीश रितेश चौहान इस परिवार की इसी सहजता, सहृदयता और दूसरों के लिए मन में पीड़ा एवं निस्वार्थ सहायता की उनकी भावना को सलाम करने और मुश्किल में उनकी मदद करने के लिए आभार व्यक्त करने धर्मशाला के स्लेट गोदाम उनके घर गए। खूब सारी बातें कीं..रजनीकांत और उनके परिजनों का धन्यवाद किया…बच्चों से हंसीं ठिठोली की…उन्हें मिठाई दी और उनकी पढ़ाई लिखाई और करियर एस्पीरेशन के बारे में जाना। इंसानियत के तानेबाने से बुना ये संवाद बेहद अनौपचारिक और सहज था।
घटना के दिन जब वे उन्हें घायलावस्था में घर लाए थे तो सौभाग्य ये रहा कि घर पर ही डॉक्टर भी मिल गईं थीं। दरअसल रजनीकांत की छोटी भतीजी कोमल एमबीबीएस हैं और आजकल टांडा अस्पताल में इंटर्नशिप कर रही हैं, वे संयोग से उस समय घर पर ही थीं…सो फर्स्ट एड भी अच्छे से हो गई। कोमल ने कुहनी और टखने के घावों से रिसते खून को डैटोल से साफ किया और मरहम पट्टी कर दी।
चौहान को बाएं बाजू की कलाई में फ्रैक्चर की वजह से भयंकर दर्द हो रहा था…सो रजनीकांत की धर्मपत्नी निशा हल्दी मिला गर्म दूध ले आईं। तब तक उनका निजी स्टाफ वहां पहुंच चुका था…सो अब परिवार को उनके जिलाधीश होने का पता चला।
रितेश चौहान उनकी सहृदयता एवं संवेदनशीलता से भाव विभोर थे। परिवार को अनेक अनेक धन्यवाद कर वे लौट तो आए, लेकिन उनके इस मृदु व्यवहार के लिए कृतज्ञता जताने वे फिर से उन सभी से मिलने के लिए आतुर थे। वे रविवार शाम को फिर उनके घर गए।
बकौल रितेश चौहान ‘रंजनीकांत और उनके परिवार से मिलकर बहुत खुशी हुई, ऐसे लोग इंसानियत की मिसाल तो हैं हीं, ये संवेदनशीलता, निस्वार्थ सेवाभाव और सहायता जैसे मानवीय गुणों के बूते मानवता के ऐम्बैसडर भी हैं।’
‘कांगड़े दी मुन्नी’ अभियान के सशक्तिकरण में भूमिका
रितेश चौहान का कहना है कि लड़कियों की उच्च शिक्षा को तवज्जो देने वाले ऐसे परिवार “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” कार्यक्रम के अंतर्गत जिला प्रशासन द्वारा आरंभ किए गए ‘कांगड़े दी मुन्नी’ अभियान का भी बल हैं। इस संयुक्त परिवार की एक बिटिया डॉक्टर बनने वाली हैै, दूसरी बेटी शिवाली इंग्लिश की अध्यापिका है। ये परिवार साधारण आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद बेटों को इंजीनियरिंग कराने के साथ साथ बेटियों के सपनों को भी ऊंची उड़ान देने में लगा है, जो सराहनीय तो है ही, अन्यों के लिए प्रेरणास्पद भी है।
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार…जीना इसी का नाम है, गुजरे जमाने के इस मशहूर गीत के फलसफे को जीवन में आत्मसात किये रजनीकांत और उनके परिजनों को सहज मानवीय संवेदना एवं निस्वार्थ सहायता भाव का सशक्त हस्ताक्षर कहना निश्चित ही कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी।