मंडी (वी कुमार): 20 जून, 2015 यह वो तारीख थी जब आईआईटी कमांद में गोली चलाने वाले बाउंसरों को अपनी मौत को निमंत्रण देना पड़ा था। एक साल पहले हुए इस गोलीकांड के पीछे का कारण था मजदूरों को उनका पीएफ न मिलना। आज एक साल हो गया है इस गोलीकांड को। कभी-कभी दादागिरी दिखाना कितना भारी पड़ सकता है, इस बात का उदाहरण पेश हुआ था एक वर्ष पहले आईआईटी कमांद में।
आईआईटी कमांद में काम कर रहे मजदूर पीएफ और अन्य सुविधाएं न मिलने को लेकर हड़ताल पर थे। ठेकेदार का काम बंद पड़ा हुआ था। ऐसे में ठेकेदार ने पंजाब से अपने कुछ बाउंसर साथियों को यहां इसलिए बुलाया, ताकि मजदूरों को डराकर दोबारा से काम शुरू करवाया जा सके। विरोध कर रहे मजदूरों को डराने के लिए जब बाउंसरों ने गोली चलाई तो इस गोली के कारण तीन मजदूर घायल हो गए। बस फिर क्या था, मजदूरों की भीड़ इतनी उग्र हो गई कि उन्होंने बाउंसरों को बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया।
9 बाउंसरों में से 4 ने मौके पर ही दम तोड़ दिया और 5 को गंभीर अवस्था में जोनल हास्पिटल भर्ती करवाया गया, जहां से उन्हें पीजीआई रैफर करना पड़ा था। इसके साथ ही गुस्साई भीड़ ने यहां पर खड़ी गाडिय़ोंं को भी आग के हवाले कर दिया था। इस घटना को बीते आज पूरा एक वर्ष हो गया है। लेकिन एक वर्ष में न तो फिर कभी मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया और न ही किसी बाउंसर को यहां लाने की जरूरत पड़ी। सुप्रीम कंपनी के प्रोजैक्ट मैनेजर राजेंद्र कुमार ने बताया कि मजदूरों को सभी सुविधाएं दी जा रही हैं और उनका पीएफ भी समय पर जमा किया जा रहा है।
यह हादसा इतना बड़ा था कि सरकार तक हिल गई थी। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर आरोपों प्रत्यारोपों का दौर जारी हो गया था। मंत्रियों तक के नाम इसमें लिए गए थे। यहां तक की मंडी के तत्कालीन एसपी को भी राज्य सरकार को हटाना पड़ा था। कमांद पुलिस चैकी के सारे स्टाफ को बदल दिया गया था और कई पुलिस कर्मी लाईन हाजिर किये गये थे। क्योंकि इस पूरे मामले में कहीं न कहीं कानून की लचर व्यवस्था का खुलासा हुआ था।
एक दिन पहले मजदूरों ने जिला प्रशासन को अपना ज्ञापन सौंपा था और अगले ही दिन गोलीकांड हो गया था। एएसपी मंडी कुलभूषण वर्मा का कहना है कि बीते एक वर्ष से कमांद में हालात सामान्य बने हुए हैं और कमांद परिसर में पुलिस की तरफ से एक गार्द तैनात की गई है जो वहां पर कानून व्यवस्था को बनाए रखने का कार्य कर रही है।
इस मामले में 16 मजदूरों और मजदूर नेताओं पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसमें 14 पुरूष और 2 महिलाएं शामिल हैं। 2 महिलाओं को तो अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया है, लेकिन 14 पुरूष मजदूर अभी भी अंडर ट्रायल चल रहे हैं। वहीं 5 बाउंसरों को भी अदालत से जमानत मिल चुकी है। यह मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है और पुलिस ने अपनी सारी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी है।