हमीरपुर, 2 जनवरी :नववर्ष 2023 से बाल योगी ‘बाबा बालक नाथ’ स्वर्ण सिंहासन पर विराजेंगे। बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) के साक्षात प्रतिनिधि महंत श्री श्री श्री 1008 राजेंद्र गिर जी महाराज के प्रयासों व मंदिर प्रशासन के सामंजस्य व सहयोग से बाबा बालक नाथ की परम पावन व साक्षात मूर्त को स्वर्ण सिंहासन मुहैया करवाया गया है। इससे पहले बाबा बालक नाथ की पावन गुफा में सोने का दरवाजा लगवाया गया था। महंत श्री श्री श्री की प्रेरणा के कारण श्रद्धालुओं के सहयोग से बाबा की परम पावन गुफा को स्वर्णमय बनाया जा रहा है।
यह तमाम कार्य बाबा बालक नाथ के प्रति अगाध श्रद्धा व अटूट विश्वास रखने वाले श्रद्धालुओं के सहयोग से किया जा रहा है। लेकिन इसमें दिलचस्प व हैरतअंगेज यह है कि पहली मर्तबा मंदिर ट्रस्ट प्रशासन के आपसी सौहार्द सामंजस्य व परस्पर समझ के कारण मंदिर में उन कार्यों को अंजाम दिया जाने लगा है जो कि पूर्व में आपसी तनातनी के चलते लगातार अटकते व लटकते आ रहे थे।
इसी कड़ी में मंदिर के आधुनिक लंगर भवन में श्रद्धालुओं को सम्मान के साथ लजीज लंगर खिलाने के लिए स्टील की चौकियों का प्रबंध भी किया गया है। जबकि बैठ न पाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी अलग से खड़े या बैठकर लंगर प्रसाद ग्रहण करने की बेहतर व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था भी सात समंदर पार ‘बाबा बालक नाथ’ के यूके स्थित मंदिर एक निवास की श्रद्धावान माता कमलजीत व श्रद्धालुओं के सहयोग व महंत श्री की प्रेरणा से की गई है।
ज्ञात रहे कि बाबा बालक नाथ व सिद्ध परंपराओं के प्रचार-प्रसार के लिए महंत श्री देश और दुनिया के भ्रमण पर जा कर भारतीय मूल व विदेशी श्रद्धालुओं को प्राचीन सिद्ध परंपराओं के आलोकिक व सिद्ध पद्धति प्रदान करते आ रहे हैं। जिस कारण देश और दुनिया में बाल योगी बाबा बालक नाथ का पुण्य प्रताप व ख्याति लगातार बढ़ती जा रही है।
लंगर हाल में यह बेहतर व अनुकरणीय व्यवस्था सात समंदर पार के श्रद्धालुओं के सहयोग से लाखों रुपए के खर्चे के बाद लंगर भवन में स्थापित की गई है। महंत श्री की प्रेरणा व सतत सहयोग के कारण पहले ‘बाबा बालक नाथ’ की पावन गुफा में सोने का द्वार श्रद्धालुओं के सहयोग व श्रद्धा के अनुरूप लगाया गया था। अब बालयोगी जी को स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान किया गया है।
शशिपाल शर्मा चेयरमैन मंदिर ट्रस्ट दियोटसिद्ध
सिद्ध बाबा बालक नाथ की परम पावन गुफा का महत्व व महत्ता श्रद्धालुओं की अटूट श्रद्धा व अगाध विश्वास के कारण है। श्रद्धालुओं से मंदिर है, मंदिर से श्रद्धालु नहीं। इसलिए श्रद्धालुओं की इच्छा मंदिर प्रशासन की कार्यशैली के लिए सदैव सर्वोच्च।