शिमला, 07 नवंबर : हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव (assembly elections) में कांग्रेस व भाजपा ने घोषणा पत्रों के जरिए यह साफ जाहिर कर दिया है कि चाहे कुछ भी हो जाये, पावर हासिल करनी है। लिहाजा ऐसे घोषणा पत्र (Manifesto) सामने आये है जिसे देखकर जनता भी विश्वास करने में कतरा रही है कि सच में ऐसा होगा।
हालांकि घोषणा पत्र पहले भी जारी होते रहे हैं, लेकिन शायद ही ऐसा पहले हुआ होगा कि जब हिमाचल प्रदेश को इस कदर मुफ्तखोरी के सब्जबाग दिखाए गए हैं। पहले कांग्रेस ने हर एक महिला को प्रतिमाह 15 सौ रुपए देने का ऐलान किया तो कांग्रेस के शीर्ष नेता आनंद शर्मा ही इस बात से मुकरते नजर आये कि उन्हें नहीं पता पार्टी ये कैसे करेगी। ओपीएस (Old Pension Scheme) के मुद्दे पर कांग्रेस के पक्ष में लहर बनते देख भाजपा एक कदम आगे ही निकल गई।
स्कूली छात्राओं को साइकिल (cycle) तो कॉलेज की गर्ल्स स्टूडेंट्स को स्कूटी तक देने का ऐलान कर दिया गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने इस पर 500 करोड़ खर्च होने की बात भी कही है। बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या मतदाताओं को मुफ्त खोरी का सब्जबाग दिखाकर ही सत्ता पाने का एक मात्र ये ही जरिया रह गया है। ऐसे में युवा व जागरूक मतदाताओं की भूमिका अहम हो गई है। लिहाजा मतदाताओं को भी वोट डालने से पहले प्रत्याशी के गुण-दोष का आकलन करना होगा ताकि मुफ्तखोरी की बजाय सही उम्मीदवार चुनकर सामने आए।
खास बात यह भी है कि हर एक कॉलेज गर्ल स्टूडेंट (College Girls Students) को स्कूटी तो देने का ऐलान कर दिया गया है, लेकिन यह नहीं सोचा गया कि महाविद्यालयों में स्कूटी पार्किंग की जगह भी होगी या नहीं। इसके अलावा पहाड़ों पर साइकिल व स्कूटी का इस्तेमाल कैसे होगा, वहीं कांग्रेस को बार-बार पूछा गया कि ओपीएस (OPS) की बहाली का क्या मॉडल है, लेकिन कोई भी नेता संतोषजनक जवाब नहीं दे सका।
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कांग्रेस से मीडिया ने कई सवाल पूछे कि राजस्थान व छत्तीसगढ़ में ओपीएस (OPS) की बहाली करने का ऐलान हुआ, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ। चुनाव प्रचार में कांग्रेस ये साक्ष्य नहीं दे पाई कि कर्मचारियों को राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कैसे ओपीएस दी जा रही है। दीगर है कि ये मुद्दा कांग्रेस की दस गारंटियों में सबसे ऊपर है। रोचक बात ये है कि भाजपा ने नौकरियों में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण भी देगी जबकि विधानसभा चुनाव में इस आरक्षण की बात ही नहीं होती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मतदाताओं का फैसला सर्वोपरि होता है।
देखना यह होगा कि 8 दिसंबर को प्रत्याशियों के बजाय राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों से मतदाता प्रभावित हुए या नहीं। यह भी दिगर है कि मतदाता जिस राजनीतिक दल को बाहर का रास्ता दिखाएंगे, उस दल के घोषणा पत्र को भी रिजेक्शन (Rejection) मिलेगी। कुल मिलाकर हिमाचल के विधानसभा चुनाव में भाजपा में महिला मतदाताओं को साधने की फ़िराक में है तो कांग्रेस कर्मचारियों के सहारे सत्त्ता पर काबिज होना चाहती है। एक अहम बात ये भी है कि हिमाचल में भी यूपी के कल्चर को अडॉप्ट कर लिया गया है जहां मुफ्त में साइकिल व अन्य वस्तुओं के प्रलोभन घोषणा पत्र में दिए जाते थे।