नाहन, 09 अक्तूबर : स्टेपको द्वारा आयोजित किए जा रहे तीन दिवसीय स्व. शूरवीर सिंह स्मृति राष्ट्रीय नाटय महोत्सव में रविवार को अविराम जन कल्याण संस्था भोपाल द्वारा रिश्तों की पुकार पर आधारित नाटक ‘संबोधन’ का शानदार मंचन किया गया। दर्शक दीर्घा में हर कोई टकटकी लगाए से कलाकारों के अभिनय को देखता रहा। सुनील राज द्वारा निर्देशित नाटक में 22 साल की बेटी पहली बार पिता से मिलती है।
पिता के बारे में केवल मां से ही सुना है। पिता और मां को अलग हुए 22 साल हो चुके हैं। नाटक में अनेकों सवाल बेटी अपने पिता के सामने रखती है। जब पिता के जवाब देने का सिलसिला शुरू होता है तो अनजाने में ही दोनों को समझ आता है कि जीवन की किताब को इतनी नजदीक से पढ़ लिया कि शब्द ही धुंधले हो गए।
मंचन के दौरान ये भी सवाल पैदा हुए कि जब बेटी के माता-पिता अलग हो गए थे तो अचानक 22 साल बाद क्यों मिले। क्यों रिश्ते एक संबोधन रह गए थे। बेटी, पिता से इस सवाल का जवाब भी तलाश रही थी कि क्यों पिता के लिए मां को छोड़ जाना इतना आसान रहा, जबकि वो जानते थे कि वो पति के बिना जीवित नहीं रह सकती।
नाटक में सफलतापूर्वक ये भी प्रस्तुत किया किया गया कि कहीं रिश्तों का अहंकार या अधूरापन आड़े तो नहीं आया। इन्हीं गुत्थियों को सुलझाते हुए रिश्ता उलझ जाता है। नाटक के मंचन के दौरान 22 साल की बेटी के पिता राज को नहीं पता कि उनके घर बेटी है।
22 साल बाद जब बेटी राज को मिलती है तो बताती है कि वो उसी की बेटी है। राज हैरान रह जाता है। पत्नी से मिलने की इच्छा जताता है तो वो बताती है कि श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं है। आहत राज श्रद्धा के प्रेम को समझा चुका है। नाटक के अंतिम क्षणों में विलाप के साथ कुछ शब्द निकलते हैं। ये संदेश भी सामने आता है कि अगर मर जाने से रिश्ते खत्म हो जाते तो दुनिया रिश्तों का आपाधापी में नहीं जी रही होती।
मंचन के दौरान ऑन स्टेज कलाकार के तौर पर श्रुति ने श्रद्धा का किरदार निभाया। आरती विश्वकर्मा ने भूमिका निभाई, जबकि सुनील राज ने राजेश्वर की भूमिका को बखूबी निभाया। बैक स्टेज में पीयूष सैनी, संतोष पंडित, विभांशु खरे, मुकेश जिज्ञासी, आरती ने जिम्मेदारी का निर्वहन बखूबी किया।