नाहन, 8 अक्तूबर : हिमाचल प्रदेश के रंगमंच के क्षेत्र में नामी संस्था ‘स्टेपको’ के प्रयास से शनिवार को तीन दिवसीय स्व. शूरवीर सिंह स्मृति राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का आगाज हो गया है। जिला परिषद भवन में राष्ट्रीय स्तर पर अभिनय का लोहा मनवा चुके कलाकार जुटे हैं।
शहर में रंगमंच का ऐसा आयोजन शायद पहली बार ही हुआ होगा। सैट की लाइटिंग से लेकर हरेक सज्जा को बेहद ही रचनात्मक तरीके से किया गया है।
महोत्सव की पहली प्रस्तुति में दलीप वैरागी द्वारा लिखित नाटक ‘उत्तर कामायनी’ का मंचन हुआ। नाटक उत्तर कामायनी के कथानक तीसरे विश्वयुद्ध के दुःस्वप्न की कल्पना पर आधारित है। परमाणु विस्फोट की पृष्ठभूमि से ये नाटक प्रारंभ होता है। परमाणु विस्फोट से उत्पन्न हुए प्रभाव को देशराज मीणा ने सैट के दृश्यबंध में बखूबी उकेरा है।
इसी प्रभाव को ही देशराज की प्रकाश परिकल्पना ने गहरे रंग व मायने प्रदान किये। अलवर के नवोदित कलाकार निखिल शर्मा ने पार्श्व संगीत व ध्वनि प्रभावों से विध्वंस के वातावरण को प्रभावी बना दिया। नाटक के प्रारंभ में वाइस ओवर के द्वारा यूक्रेन – रूस युद्ध पर न्यूज चैनलों की बाइट्स देकर नाटक को एक संदर्भ दे दिया गया कि आज किस कदर पूरी दुनिया बारूद के ढेर पर खड़ी है। केवल एक चिंगारी की जरूरत है और सब कुछ स्वाहा। इसी के साथ- साथ लड़ाकू विमानों की गर्जना ने प्रभाव को पैदा करने व दर्शकों के मस्तिष्क पर नाटक के टेक ऑफ के लिए जमीन तैयार की।
इसी समतल जमीन पर खड़े होकर अपने अभिनय की उड़ान भरते हैं अलवर के युवा अभिनेता हितेश जैमन। हितेश जैमन पिछले चार-पांच वर्षों से रंगमंच पर सक्रिय हैं। यद्यपि उन्होंने अनेक नाटकों में उल्लेखनीय भूमिकाएं निभाई हैं किंतु उत्तर कामायनी जैसे एकल नाटक का यह अनुभव जहां उनके अभिनय को एक नया आयाम देगा वहीं दर्शकों के जहन में भी लंबे समय तक अमिट रहेगा।
70 मिनट की अवधि का एकल नाटक बाकी क्षेत्रों के अलावा अभिनेता से सबसे अधिक डिमांड करता है। बहुत अधिक सृजनात्मक ऊर्जा की दरकार इस नाटक में है जिसे हितेश जैमन ने आद्यन्त बनाए रखा है।
अपने कथानक में नाटक सायास बहुत से मुद्दों, भाषा, साइंस, राजनीति, धर्म इत्यादि पर बात करता चलता है। नाटक कहता है कि महायुद्धों में केवल इंसानियत के मरने का ही खतरा नहीं है, बल्कि उसके साथ साथ करोड़ों वर्षों से इंसानियत के साथ विकसित हुए सोचने समझने के औजार भाषा और साइंस भी खत्म हो जाएंगे। इसलिए नाटक के संवादों को , “भाषा ने आत्म हत्या कर ली” और “साइंस ने आत्म हत्या कर ली” हितेश जैमन सधे हुए तारीके से डिलीवर करते हैं कि इन संवादों के अभिप्राय दर्शकों के समक्ष खुलते जाते हैं।
इस नाटक के विभिन्न संवादों में भावों का जबरदस्त स्विंग और एक दृश्य से दूसरे दृश्य में ट्रांजिशन बहुत चुनौतीपूर्ण काम है। इसे हितेश जैमन ने सफलतापूर्वक निभाया। कुल मिलाकर यह नाटक उम्दा अभिनय, यथार्थ मंच सज्जा व प्रभावी संगीत-ध्वनि प्रभाव के मिश्रण से ही जीवंत नाट्य अनुभव बन सका। रंगबाज़ थियेटर फेस्टिवल में 9 अक्टूबर 2022 को सायं 5 बजे अविराम भोपाल सम्बोधन नाटक का मंचन करेगा
6.30 बजे स्टेपको नाहन का नाटक सन्न 2025 मंचित होगा
पहले दिन बतौर मुख्यातिथि मनोज जोशी पहुंचे। इसके अलावा गणमान्य व्यक्तियों में प्रो. प्रेम भारद्वाज, डाॅ. एसके सबलोक, अशोक मेहरा, उमा शंकर मिश्र, रामपाल मलिक व डाॅ. मनोज कुमार समेत सैंकड़ों दर्शक मौजूद थे।