नाहन (एमबीएम न्यूज़) : जंगलों में भडकी आग से सिरमौर भी जख्मी हुआ। तकरीबन 250 मामले सामने आए। विशेषज्ञों के मुताबिक औसतन 4 साल में जंगलों की आग का भयावक चेहरा सामने आता है। इसका कारण है जंगलों में ‘‘फायर लोड’’ । दरअसल आग से बचने के लिए जंगलों से पत्तियां तो साफ कर ली जाती है मगर यह कुदरती प्रक्रिया है कि सूखी लकडियां एक ऐसे पदार्थ में तब्दील होती रहती है जो ज्वलनशील होता है। इसके अलावा मार्च-अप्रैल के महीनों में चीड की पत्तियां गिरना स्वाभाविक है।
विशेषज्ञ मानते है कि प्राकृतिक तौर पर कुछ हद तक जंगलों की आग सही भी है मगर इसमें दुर्भाग्य केवल वन्य प्राणी का जीवन रहता है। विभाग दावे से कह रहा है कि इस साल बेशक ही 250 के करीब मामले सामने आए। लेकिन कहीं से भी क्राऊन फायर की रिपोर्ट नहीं मिली। दरअसल इस तरह की आग में पूरे के पूरे विशाल पेड आग की भेंट चढ जाते है।
वन अरण्यपाल आरके गुप्ता ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में कहा कि चीड के पेड आग लगने के बावजूद भी पनप जाते है। उनका कहना है कि काफी हद तक आग की घटनाओं की वजह जंगलों में घास का लालच भी है। इसी कारण लोगों द्वारा आग लगाई जाती है। वन अरण्यपाल ने माना कि अब तक यह मानसिकता नहीं बदली है कि जंगलों में आग लगने के बाद पशु चारे के लिए प्रचूर मात्रा में घास मिलेगा।