नाहन, 26 अप्रैल : ये बात, 4 मई 2014 की है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते देश के मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि अगर देश में एनडीए की सरकार बनती है तो ट्रांसगिरि क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाएगा। इस बात के ठीक 8 साल बाद कुछ ऐसा हुआ है कि ट्रांसगिरि क्षेत्र में खुशी की लहर है।
सोमवार की शाम ये खबर सामने आई कि हाटी समिति की केंद्रीय कार्यकारिणी के प्रतिनिधिमंडल ने गृहमंत्री अमित शाह से बात की है। गृह मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को ये बताया कि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया से पॉजिटिव रिपोर्ट आई है। जल्द ही इस मामले को केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि लगभग 50 साल से उत्तराखंड के जौनसार की तर्ज पर सिरमौर के ट्रांसगिरि क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग न्यायसंगत है। इस इलाके में आज भी पिछड़ापन तो है ही, साथ ही कई क्षेत्र तो ऐसे हैं, जो किन्नौर व लाहौल-स्पीति की तरह बर्फबारी के दौरान महीनों तक शेष दुनिया से कटे रहते हैं।
कुछ महीनों से ट्रांसगिरि क्षेत्र में खुमलियों के जरिए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही थी। अब हिमाचल के चुनाव से कुछ महीने पूर्व इस मांग पर हलचल तेज हो गई है। दबी जुबान से एक सवाल का जवाब तलाश किया जा रहा है कि कहीं ट्रांसगिरि वालों को दोबारा तो नहीं ठग लिया जाएगा, जैसा अतीत में होता आया है।
हिमाचल सरकार की मंशा चुनावी लाभ की है या नहीं, इस सवाल का जवाब उसी सूरत में सामने आएगा, जब हिमाचल में चुनावी आचार संहिता लागू होने से पहले हाटी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की केंद्र द्वारा अधिसूचना जारी कर दी जाए।
चूंकि हद से हद राज्य सरकार के पास अक्तूबर तक का वक्त है। वो भी उस सूरत में अगर चुनाव जल्दी नहीं करवाए जाते। ऐसे में इस मांग पर सरकार कितनी तेजी से कार्य करती है, इस बात पर नजरें टिकी रहेंगी।
उल्लेखनीय है कि सिरमौर के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से श्री रेणुका जी व शिलाई हलके करीब-करीब पूरी तरह से ही ट्रांसगिरि में हैं। हालांकि, डिलिमिटेशन के बाद गिरि आर के कुछ इलाके भी इन विधानसभा क्षेत्रों में शामिल हुए हैं।
इसके अलावा पच्छाद विधानसभा क्षेत्र का 50 फीसदी हिस्सा गिरिपार में है। पांवटा साहिब निर्वाचन क्षेत्र में भी ट्रांसगिरि क्षेत्र का प्रभाव है। ऐसे में इस मांग को राजनीतिक दलों के लिए नकारना नामुमकिन है तो इसे पूरा करना भी आसान नहीं है। लिहाजा, आशंका ये भी है कि कहीं बीच का रास्ता निकाल कर वोटों पर नजर तो नहीं रखी जा रही।