सुंदरनगर,10 अप्रैल: सुकेत रियासत की देव आस्था अनूठी है। इसमें करसोग क्षेत्र के देवी-देवताओं का महत्वपूर्ण स्थान है। 80 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद इस वर्ष राज्य स्तरीय सुकेत देवता मेले में शिरकत कर रहे करसोग क्षेत्र के “श्री माहूंनाग शड़ोट” श्रद्धालुओं के लिए उत्सुकता का केंद्र बने हुए हैं।
देवता की कोठी करसोग उपमंडल के गांव शड़ोट में स्थित है,लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा पैदल तय कर सुकेत देवता मेले में शिरकत करने पहुंचे हैं। मूल मांहूनाग बखारी करसोग के भाई माने जाने वाले श्री मांहूनाग शड़ोट के मुख्य गण धुनिया महाराज, रकक्षेठा महाराज, जोगणु और जुडंला महाराज हैं। धुनिया महाराज को देवी महामाया ने देवता को दिया है।
देवता के यह गण भोजन के रूप में आग का भोजन ग्रहण करते हैं,जलती आग पर आसन लगाते है। देवता के रकक्षेठा महाराज पत्थर तथा गौमुत्र का भोजन ग्रहण करते हैं। मांहूनाग शड़ोट पशुओं के रोग का ईलाज,सांप का डर और सांप द्वारा काटे जाने का ईलाज और निसंतान दंपतीयों को संतान सुख प्रदान करने के लिए क्षेत्र में जाना जाता है।
देवता के साथ हमेशा धूना जलाना अनिवार्य रहता है। देव बेल के समय जब देवता के गणों को ‘देव खेल’ आती है तो जलते हुई लकड़ी के अंगारे खाने से सभी श्रदालु आश्चर्यचकित हो जाते हैं। इसके उपरांत देवता द्वारा अपने गणों के माध्यम से श्रदालुओ की ‘पूछ’ भी डाली जाती है। जिसमें देवता दुखों का निवारण करते है।