नाहन, 22 मार्च : राजगढ़ उपमंडल के देवठी मझगांव के विद्यानंद सरैक ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन में सिरमौर की पारंपरिक वेशभूषा की छाप छोड़ी। करीब 82 वर्षीय विद्यानंद सरैक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश की शीर्ष हस्तियों की मौजूदगी में काले रंग का लोईया व हरे रंग की टोपी पहनकर ‘पदमश्री’ को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों ग्रहण किया।
बता दें कि लोईया व हरे रंग की टोपी हाटी समुदाय की पहचान है। 2018 में भी सरैक ने राष्ट्रपति से लोईया व टोपी पहन कर पुरस्कार प्राप्त किया था। अवार्ड लेने के लिए सरैक अपने परिवार सहित रविवार को ही देश की राजधानी में पहुंच गए थे।
मात्र 4 साल की उम्र में करियाला मंच को संभालने वाले विद्यानंद सरैक ने 1957 में पहली बार ऑल इंडिया रेडियो द्वारा आयोजित भारतीय लोकनृत्य प्रतियोगिता में प्रस्तुति दी थी। जीवन में कई असामान्य कार्य करने के महारथी विद्यानंद सरैक को गीता के 18 अध्यायों का सिरमौरी भाषा में अनुवाद करने का भी गौरव हासिल है। यही नहीं, रविंद्र नाथ टैगोर की 51 कविताओं का भी सिरमौरी में रूपांतरण किया है।
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दिलचस्प बात ये है कि वो 82 साल की उम्र में भी लोक संस्कृति, लोक गायन, वाद्ययंत्रों में ऐसी प्रस्तुति दे सकते हैं, जिसे देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबा लेता है।
26 जून 1941 को जन्में सरैक ने अपनी सांस्कृतिक मंडली के साथ मिलकर देश व विदेश में कई मंचों पर हिमाचली संस्कृति की अनूठी छाप छोड़ी है। 2018 में साहित्य संगीत के लिए उन्हंे राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था।
1959 से 1976 तक एक शिक्षक की भूमिका निभाने के बाद पत्रकारिता भी की। पदमश्री विद्यानंद सरैक एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें अगर हिमाचल के सबसे बुजुर्ग हुनरबाज का तमगा दिया जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।