नाहन, 01 मार्च: जीवन में कुछ जख्म ऐसे भी होते हैं जो जिंदगी के मायने ही बदल कर रख देते हैं। ऐसा ही एक वाकया हिमाचल पथ परिवहन निगम (HRTC) के परिचालक जोगिंद्र ठाकुर के साथ घटित हुआ। 18 नवंबर 2000 को श्री रेणुका जी से कोटीधीमान जा रहे निजी बस खाई में लुढ़क गई। हादसे में 14 व्यक्तियों की दर्दनाक मौत हुई।
निगम का परिचालक जोगिंद्र ठाकुर भी इस बस में मौजूद था। कुदरत ने उसे नवजीवन दिया। तब उसके माथे में ये बात खटक गई थी कि अगर उसे इस भयंकर हादसे में नया जीवन मिला है तो कुछ कर दिखाने के लिए ही मिला है। तब जोगिंद्र ने ये संकल्प लिया था कि वो अपना जीवन समर्पित करेंगे। संगड़ाह के रजाना के जोगिंद्र को 4 जून 2005 को हिमाचल पथ परिवहन निगम में बतौर कंडक्टर (conductor) नौकरी मिल गई।
नौकरी मिलते ही ये फैसला कर लिया कि वो नौकरी के दौरान विकट से विकट परिस्थिति (dire situation) में भी छुट्टी नहीं लेंगे। आज 16 साल 8 महीने बीत चुके हैं, लेकिन जोगिंद्र ने कोई छुट्टी नहीं ली। इससे पहले निजी बस में नौकरी के दौरान भी छुट्टी नहीं ली। ऐसा भी कई बार हुआ कि जब घर पर खुशी या गम का समय न आया हो, तब भी इस शख्स ने छुट्टी नहीं ली।
कोविड (Covid) संकट के दौरान बेशक ही निगम की बसें न चली हों, लेकिन वो हर वक्त डयूटी के लिए तैयार रहा। कोविड संकट में भी कई मर्तबा जोगिंद्र को सेवा करने का मौका मिला।
मौजूदा में कंडक्टर जोगिंद्र ठाकुर नाहन से घाटों रूट पर चलते हैं। रोजाना करीब 180 किलोमीटर का सफर पूरा करते हैं। समूचे निगम में शायद एकमात्र कंडक्टर हैं, जो इस हद तक अपनी कर्त्तव्य परायणता (devotion to duty) को निभा रहे हैं।