शिमला, 15 जनवरी : भारतीय मिष्ठान में ‘जलेबी’ की एक खास जगह है। इसके शौकीन, इसका जायका अपने-अपने तरीके से लेते हैं। सुनने में आलू की जलेबी अटपटी लगेगी, लेकिन वास्तविकता में शिमला स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (Central Potato Research Institute) के वैज्ञानिकों (scientists) ने आलू की जलेबी को ईजाद कर लिया है। यही नहीं, इसे पेटेंट भी करवा लिया गया है। ये मैदे की जलेबी की तुलना में अधिक लजीज होगी, ऐसा दावा किया गया है।
दिलचस्प ये है कि पहले आलू की पहचान चिप्स, फ्रेंच फ्राइज, कुकीज व दलिया इत्यादि के लिए होती थी, वहीं आलू जलेबी वाला भी हो गया है। यह भी बताया गया है कि आलू की जलेबी कुरकुरी व स्वादिष्ट तो होगी है, साथ ही इसका कई महीनों तक भंडारण भी किया जा सकता है। इसे बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक खास किस्म का आलू भी ढूंढा है। बनाने के लिए आलू को छिलके समेत इस्तेमाल किया जाएगा। बता दें कि आलू के छिलके में ज्यादा फाइबर होता है। साथ ही मौजूद स्टार्च कुरकुरापन लेकर आएगा।
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने आलू की जलेबी बनाने के फार्मूले को पेटेंट (Patent) भी करवा लिया है, यानि आलू की जलेबी का फार्मूला (Formula) बेचकर संस्थान को कमाई भी होगी। फिलहाल संस्थान ऐसी कंपनी की तलाश कर रहा है, जो प्रोडक्ट को कैनिन के जरिए डिब्बा बंद (Canned) कर सके। इस्तेमाल करने वाले को केवल डिब्बा खोलकर जलेबी को चाशनी मे डुबोना होगा। ऐसा भी दावा है कि जलेबी 8 महीने तक खराब नहीं होगी। जबकि मैदे वाली जलेबी एक दिन में ही खाने लायक नहीं रहती।
संस्थान के वैज्ञानिक डाॅ. अरविंद जायसवाल ने मीडिया को बताया कि जलेबी को चाशनी में तैयार करने के बाद इस्तेमाल किया जा सकेगा। नामी कंपनियों से पैकिंग को लेकर बातचीत चल रही है। उल्लेखनीय है कि डिब्बों में कई तरह के व्यंजन उपलब्ध हैं। इसमें कई तरह की मिठाईयां भी शामिल हैं। सिरमौर के एक उद्योग द्वारा ‘समोसे’ का एक्सपोर्ट (Export) भी किया जाता रहा है। चूंकि जलेबी तुरंत ही खराब हो जाती है, लिहाजा इसकी डिब्बा पैकिंग भी आज तक मार्किट में नहीं पहुंची।
उधर, बताया गया है कि संस्थान द्वारा आईटी जैसी नामी कंपनियों से आलू की जलेबी की पैकिंग को लेकर बातचीत की जा रही है, ताकि इसे डिब्बा बंद कर मार्किट में बेचा जा सके।