शिमला, 01 दिसंबर : हिमाचल की भाजपा शासित जयराम सरकार का जेसीसी की मीटिंग बुलाकर कर्मचारियों के लिए बड़ी घोषणाएं करने का दांव उल्टा पड़ता दिख रहा है। कर्मचारियों के अलग-अलग वर्ग भी अब सरकार से अपनी मांगें मनवाने की कोशिशों में जुट गए हैं। पुलिस जवानों के अलावा असंगठित क्षेत्र में कार्यरत कामगारों व अस्थायी कर्मियों के तलबगार संगठन सड़कों पर उतरकर सरकार से दो-दो हाथ करते दिख रहे हैं।
दरअसल जेसीसी मीटिंग में अनदेखी से राज्य के हजारों पुलिस जवानों में सरकार के प्रति भारी नाराजगी है। हिमाचल के इतिहास में पहली बार ऐसा घटनाक्रम घटा है कि सैंकड़ों पुलिस जवान अपनी वर्दी में मुख्यमंत्री आवास ओकओवर में शक्ति प्रदर्शन करने पहुंच गए। बीते रविवार के दिन घटित पुलिस जवानों के इस कदम ने मुख्यमंत्री सहित पूरी अफसरशाही को हिला कर रख दिया। पुलिस कर्मचारी अपने संशोधित पे बैंड को जकड़ देने और आठ साल का अनुबंध काल खत्म करने की मांग कर रहे हैं।
पुलिस कर्मचारियों में इस बात से भारी नाराजगी है कि जेसीसी में कर्मचारियों के एक वर्ग को तो सौगात दी गई, लेकिन उनकी लम्बे समय से चली आ रही मांगों को बिलकुल अनसुना कर दिया गया और उनके पक्ष में कोई घोषणा नहीं हुई। नाराज पुलिस कांस्टेबल सरकारी मैस का खाना छोड़ चुके हैं।
अहम बात यह है कि पुलिस कांस्टेबलों की तरफ से अपनी मांगें मनवाने के लिए सोशल मीडिया पर जंग छेड़ी गई है। ईमेल और व्हाट्सप पर आम जनमानस को बताया जा रहा है कि सरकार जवानों के साथ अन्याय कर रही है। ओक ओवर में अचानक एक साथ बड़ी तादाद में वर्दीधारीपुलिस जवानों के डेरा डालने के घटनाक्रम ने सरकार की अफसरशाही सहित पुलिस तंत्र पर कमजोर पकड़ को भी उजागर किया।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जैसे-तैसे हालात संभाले और ओकओवर में आ धमके पुलिस जवानों की मांगों को पूरा करने का आश्वासन भले ही दिया हो, लेकिन पुलिस जवान इसे धरातल पर उतारने का इंतजार कर रहे हैं। पुलिस जवानों के सीएम आवास में शक्ति प्रदर्शन करने की घटना के अगले ही दिन राजधानी में भामंसं के नेतृत्व में असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के विभिन्न संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर उग्र प्रदर्शन किया।
काबिलेगौर है कि भारतीय मजदूर संघ बीजेपी से जुड़ा संगठन है और जयराम सरकार को अपनी ही पार्टी के संगठन के आक्रोश का सामना करना पड़ा। हालात तब बिगड़े जब प्रदर्शनकारियों ने सचिवालय का गेट खोलने की ही कोशिश कर डाली। इस दोैरान पुलिस व प्रदर्शनकारियों की भिड़ंत हुई और कुछ प्रदर्शनकारी जख्मी हुए। भारतीय मजदूर संघ की मांगों में दैनिक भोगियों, सभी सरकारी और अर्ध सरकारी, स्कीम वर्कर, मनरेगा, निजी उद्योगों और असंगठित क्षेत्र में कार्यरत दैनिक भोगी कामगारों को 18 हजार रू. प्रति माह वेतन की मांग की गई। सभी सरकारी कर्मचारियों को 7वें वेतनमान को लागू करने की मांग के अलावा, सरकारी और निजी क्षेत्र के उद्योगों में ठेकेदारी प्रथा को बंद करने, आंगनबाड़ी, आशा वर्कर , मिड डे मील वर्करों के लिए स्थाई नीति के निर्माण के साथ- साथ सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की मांग शामिल है। राजधानी में पिछले कल जेबीटी प्रशिक्षुओं ने बीएड डिग्री धारकों को जेबीटी के लिए पात्र होने के खिलाफ सचिवालय के बाहर प्रदर्शन करने की रणनीति तैयार की थी, लेकिन पुलिस प्रशासन ने पहले की घटना से सबक लेते हुए इन्हें सचिवालय पहुंचने से पहले ही रोक लिया।
अहम बात यह है कि जेसीसी के बाद घटे घटनाक्रमों ने सरकार को कहीं कहीं बैकफुट पर ला दिया है। जयराम सरकार ने भाजपा के मिशन 2022 के लिए जेसीसी मीटिंग में कर्मियों के पक्ष में बड़ी घोषणाएं कर उनके वोट बैंक को साधने की कोशिश तो की है। अब यह सरकार पर निर्भर करता है कि वो नाखुश चल रहे कर्मियों के लिए भी घोषणाओं का पिटारा खोलती है या नहीं।