मंडी (एमबीएम न्यूज़) : छोटी काशी में महाशिवरात्रि पर्व के उपलक्ष्य पर बाबा भूतनाथ मंदिर में पहली बार शुक्रवार को भस्म आरती की गई। 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन विशेष रूप से भस्म आरती की जाती है। उसी तर्ज पर मंडी के प्राचीन भूतनाथ मंदिर में भस्म आरती का आयोजन किया गया। प्रातः आयोजित इस विशेष पूजन में भाग लेने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु भूतनाथ मंदिर में उपस्थित हुए। मंडी का शिवरात्रि पर्व सीधे तौर पर भूतनाथ मंदिर जुड़ा है लेकिन इस बार भोलेनाथ को हर वर्ष होने वाले मक्खन के लेप को शिव के विभिन्न रूपों से जोड़ा गया।
बाबा भूतनाथ मंदिर में आयोजित भस्म आरती के लिए विशेष रूप से भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास व बेर के वृक्ष की लकडियों को एक साथ जलाकर भस्म को कपड़े में छानकर शिवजी को अर्पित किया जाता है। भूतनाथ मंदिर के विवेकानंद सरस्वती ने बताया कि शिवजी के पूजन में भस्म अर्पित करने का विशेष महत्व है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन विशेष रूप से भस्म आरती की जाती है। शनिवार को त्रिलोकीनाथ के रूप में बाबा के दर्शन होंगे।
महाशिवरात्रि त्योहार के शुरू होने से एक माह पहले शिवलिंग पर मक्खन का लेप चढ़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। शिवलिंग पर पहला मक्खन चढ़ाने की परंपरा पहले राजाओं द्वारा पूरी की जाती थी। सदियों से राजाओं द्वारा निभाई जा रही इस परंपरा को आज भी मंडी जनपद के लोग श्रद्धापूर्वक शिवलिंग पर मक्खन चढ़ाकर निभा रहे हैं। शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए रखी गई जल की गागर को एक माह के लिए उतार दिया जाता है। जल की गागर को उतारने के बाद शिवलिंग पर मक्खन का लेप लगाया जा रहा है। पूरे वर्ष में ग्यारह महीने तक शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है। एक माह मक्खन का लेप लगाया जाता है। मान्यता है कि शिवलिंग पर मक्खन चढ़ाने से हर मनोकामना पूर्ण होती है। 6 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग से मक्खन उतार दिया जाएगा। मक्खन को पिघलाकर घृत को सुबह-शाम की आरती के समय ज्योति प्रज्वलित की जाती है।
बाबा भूतनाथ मंदिर की स्थापना 1526 ईस्वी में हुई। 1527 ईस्वी में जब मंडी शहर बसा तभी से राजा अजबर सेन के समय मंडी में महाशिवरात्रि का पर्व मेले के रूप में शिव-पार्वती के पूजन के साथ मनाया जा रहा है। तब से लेकर आज तक इस पौराणिक परंपरा को निभाने के लिए मंदिर के महंत, पुजारी, श्रद्धालु व जिला प्रशासन सभी औपचारिकताओं के साथ निभा रहे हैं।