शिमला, 19 अगस्त : ऊना क्षेत्रीय अस्पताल के परिसर में फार्मेसी दुकान के आवंटन में वित्तीय अनियमितता के मामले में प्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को ऊना के चिकित्सा अधीक्षक-सह-सदस्य सचिव, रोगी कल्याण समिति और मुख्य चिकित्सा अधिकारी-सह-सदस्य, रोगी कल्याण समिति के खिलाफ कानून का उल्लंघन करने के लिए उचित कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट का यह भी कहना है कि इन अधिकारियों के खिलाफ वित्तीय अनियमितताएं और उनके द्वारा किए गए कृत्यों के लिए संबंधित धाराओं में मामला दर्ज करने की जरूरत पड़ती है, तो वो भी की जानी चाहिए।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने ये आदेश ऊना डिस्ट्रिक्ट केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एलायंस (यूडीसीडीए) द्वारा दायर एकयाचिका पर पारित किए। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि वर्ष 2017 में रोगी कल्याण समिति क्षेत्रीय अस्पताल ऊना ने नोटिस प्रकाशित कर बोलियां मंगाकर क्षेत्रीय अस्पताल ऊना के परिसर में एक फार्मेसी की दुकान एक लाख रुपये के मासिक किराए पर आवंटित की थी। इसमें रखे गए प्रावधान के तहत किराए में तीन साल बाद 10 फीसदी की वृद्धि और दो लाख रुपये की राशि बतौर सिक्योरिटी जमा की जानी थी।
लेकिन तीन साल बाद 18 मार्च 2020 को, दुकान को 9,800 रुपये के मासिक किराए पर आवंटित कर दिया गया और ऐसे व्यक्ति को दुकान आबंटित की गई जो कि फार्मासिस्ट भी नहीयाचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री, सचिव (स्वास्थ्य) और निदेशक स्वास्थ्य सेवा के समक्ष भी ये बात रखी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने आरोप लगाया है कि निविदा को बिना कोई नोटिस जारी किए या किसी समाचार पत्र या सोशल मीडिया में प्रकाशित किए बिना प्रदान किया गया है।
हाईकोर्ट ने पाया कि इतने उच्च मूल्य की निविदा के लिए प्रकाशन को उचित कवरेज दिया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भाग लेने वाले बोलीदाता सरकार को उच्चतम दर की पेशकश करते, लेकिन उत्तरदाताओं ने जानबूझकर प्रक्रिया से परहेज किया है। हाईकोर्ट ने आगे कहा कि एक गैर-फार्मासिस्ट को एक फार्मेसी की दुकान का टेंडर देने के कार्य ने जनता के जीवन को खतरे में डाल दिया है।
कोर्ट ने यह भी देखा कि इस प्रक्रिया में वित्तीय अनियमितता भी हुई है, क्योंकि पिछले दौर में प्राप्त संपत्ति का किराया पहले तीन वर्षों के लिए 1,00,000 रुपये प्रति माह था, लेकिन इसका आबंटन 9800 रुपये प्रतिमाह बिना किसी सिक्योरिटी राशि के कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि यह न केवल उनके द्वारा की गई एक त्रुटि है, बल्कि एक वित्तीय अनियमितता और एक प्रक्रियात्मक उल्लंघन का एक जानबूझकर किया गया कार्य है।
याचिका को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने निविदा के आबंटन को रद्द कर दिया और प्रतिवादी मुनीश कुमार को 20 अगस्त या उससे पहले उपायुक्त ऊना को खाली कब्जा सौंपने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अब से प्रतिवादी, यानी चिकित्सा अधीक्षक-सह- सदस्य सचिव, रोगी कल्याण समिति, ऊना और मुख्य चिकित्सा अधिकारी-सह-सदस्य, रोगी कल्याण समिति, ऊना किसी भी तरह से किसी भी वित्तीय मामले से नहीं निपटेंगे और इन प्रतिवादियों के कामकाज का संचालन उपायुक्त ऊना द्वारा किया जाएगा।
जब तक जांच और आपराधिक कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती। कोर्ट ने राज्य सरकार को 23 अगस्त तक इस मामले में अनुपालन रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया है।