हमीरपुर, 06 अगस्त : भारतीय हॉकी टीम ने 41 साल बाद ओलंपिक में कांस्य पदक हासिल किया है। मैच में शरुआत में पिछड़ने के बाद भारत ने जोरदार वापिसी की। जर्मनी को 5-4 से मात देकर जीत हासिल कर ली। इस जीत से पूरे भारत मे खुशी की लहर है। वही हमीरपुर में गुमनामी का जीवन बसर कर रहे हॉकी के जादूगर सुभाष चंद शर्मा के आंखो में ऐसी चमक थी कि मानो वो भी भारतीय टीम का हिस्सा हो। हिमाचल में वो हॉकी चैंपियन के नाम से मशहूर हैं।
खेल के मैदान में जब उनकी हॉकी की स्टिक चलती थी तो हर कोई उनकी तुलना मेजर ध्यानचंद से करता था। 6 बार नेशनल खेल चुका ये शख्स बेशक बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर है। मगर इस बात को लेकर खुश है कि अपने जीवन में भारतीय हॉकी का शानदार अध्याय देखा है।
बता दे कि सुभाष ने सुभाष जूते सिल कर अपनी परिवार का पोषण किया हैं बल्कि बच्चो को उच्च शिक्षा भी दिलवाई। भारतीय टीम की जीत के बाद सुभाष चंद ने एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क से बातचीत में कहा कि खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के पद संभालने के बाद टीम की जबरदस्त हौंसला अफजाई का ही नतीजा है कि दशकों बाद भारत को कांस्य पदक हासिल हुआ है।
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उधारी की हॉकी स्टिक से करते थे प्रैक्टिस…
बता दें कि हॉकी चैंपियन सुभाष चंद हिमाचल प्रदेश हमीरपुर के रहने वाले हैं। वे जिला मुख्यालय हमीरपुर के मेन बाजार में जूते की दुकान चलाते हैं। 6 बार नेशनल हॉकी चैंपियन रहे सुभाष बेहद गरीबी में हॉकी खेलना शुरू किया था, वे सीनियर से हॉकी स्टिक उधार लेकर प्रैक्टिस किया करते थे। सुविधा के नाम पर उनके पास कुछ नहीं था। इसके बावजूद सुभाष अपनी मेहनत के बदौलत स्कूल से लेकर नेशनल कई मेडल हासिल किए। पहली बार जब वे नेशनल खेलने के लिए मैदान में उतरे तो पैड भी उधार में लेना पड़ा था।
बच्चों को खेल से कर दिया दूर
हॉकी के लिए अपना सब-कुछ त्याग करने वाले सुभाष अब हालंकि स्पोर्ट्स का नाम लेना पसंद नहीं करते हैं। मगर आज वो भी टीम इंडिया की उपलब्धि पर बेहद खुश नजर आये। बच्चों को हमेशा स्पोर्ट्स से दूर रहने की हिदायत दे रखी थी। अपने बच्चों को भी तंगहाली में देखना सुभाष को पसंद नहीं था। खिलाड़ी बनने की चाहत रखने वाले अपने बेटे-बेटी को उन्होंने पढ़ाई करवाई। बेटी एमटेक करके जॉब कर रही है। वहीं, बेटा भी प्राइवेट फर्म में जॉब कर रहा है। सुभाष कहते हैं कि अगर उनके पास मोची का पुश्तैनी धंधा नहीं होता तो उनका परिवार भूखे मर सकता था।
कब-कब खेले नेशनल
सुभाष चंद्र जूनियर लेवल से लेकर सीनियर लेवल तक हॉकी में 6 बार नेशनल खेल चुके हैं। उनका कहना है कि 1977 में उन्होंने पहली बार स्कूल से जूनियर नेशनल में हिस्सा लिया था। उसके बाद 3 बार जूनियर लेवल पर नेशनल खेले। 2 बार इंटर युनिवर्सिटी और 2 बार सीनियर लेवल पर नेशनल खेला। 6 बार नेशनल खेलने के बाद भी न तो सरकार की तरफ से कोई सम्मान, सहायता मिली। लाचारी में उन्हें 1984 में आईटीआई करनी पड़ी। उसके बाद भी कहीं नौकरी नहीं मिली। सरकार से कई बार मदद की गुहार लगाने के बावजूद भी कुछ हासिल नहीं हुआ। अंत में फैमिली को चलाने के लिए पुश्तैनी धंधा मोची का काम करना शुरू कर दिया।