नाहन/ प्रकाश शर्मा
हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता हैं। दुनिया भर से लोग यहां आकर प्रकृति की गोद में सुकून महसूस करते हैं। कुल्लू- मनाली लाहौल-स्पीति जैसे अनेक ऐसे पर्यटन स्थल हैं, जो अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। लेकिन कुछ स्थान ऐसे भी हैं, जो अभी भी पर्यटन मानचित्र पर अपनी जगह तलाश रहे हैं।
हम बात कर रहे हैं, देवभूमि के पिछड़े जिलों की फ़ेहरिस्त में शुमार सिरमौर की। उपमंडल संगडाह के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र गत्ताधार के जुईनिधार घाटी का नजारा आंखों को सुकून देता है, यहां आकर हर कोई प्रकृति की सुंदरता में मग्न हो जाता हैं। आलम ये होता कि घाटी की खूबसूरती यूरोप को भी पीछे छोड़ देती है। साधारण शब्दों में कहा सकता है कि सिरमौर पर्दे पीछे यूरोप छिपा है।
इस जगह को पांडव पुत्र भीम की हस्तछाप खास बनाता है। मान्यता के अनुसार पांडव पुत्र भीम ने इस घाटी में आने दौरान अपने हाथ की छाप छोड़ी जो अद्भुत तरीके से आज भी देखने को मिलती हैं।
MBM NEWS NETWORK की टीम को इस अदभुत स्थान को देखने का मौका मिला। कुछ मायनो में इसमें सच्चाई भी पाई गई। यहां हाथ की उँगलियों के आकार की 5 चट्टानें हैं। जो असल में एक हाथ की उँगलियों के आकार की है। ऐसा माना जाता हैं की भीम की एक छलांग के दौरान यह निशान बने थे।
समुद्र तल से 10 हजार फुट की ऊंचाई
समुद्र तल से लगभग 10 हजार फुट की ऊंचाई में स्थित ये स्थान स्थानीय लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यहां पर स्थित शिरगुल महाराज का मंदिर अपने आप में एक अलग पहचान रखता हैं। चूंकि यहां तक सड़क की सुविधा नही हैं, लिहाजा पर्यटक यहां तक नहीं पहुंच पाते हैं। यहां तक पहुंचने के लिए लगभग 6 किमी की खड़ी चढाई चढनी पड़ती हैं। लेकिन जो लोग यहां पहुँचते है, उनके दिल को एक अलग सुकून मिलता है। चोटी के शीर्ष तक पहुंचते-पहुंचते जनवरी महीने में तापमान -8 डिग्री तक पहुंच जाता हैं, जबकि सर्दियों की रातों का तापमान माइनस12 डिग्री तक भी पहुंच जाता है।
केवल 6 महीने रहना संभव
यहां लोग दोची बनाकर रहते हैं। दोची एक अस्थाई घर हैं, जहां लोग केवल कुछ समय के लिए रहते हैं। यहां के लोग गर्मियों में अपने पशुधन के साथ पहुंच जाते हैं और सर्दियाँ शुरू होते ही (अक्तूबर- नवंबर) में वापिस अपने घरों की तरफ़ प्रस्थान करते हैं। क्योंकि यहां सर्दियों मे रहना संभव नहीं हैं। यहां लगभग 6-7 फ़ीट बर्फ की चादर बिछी रहती हैं।
नहीं बना सकते दो मंजिला घर
एक मान्यता के अनुसार व्यक्ति यह दो मंजिला घर नहीं बना सकते। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई यहां एक से अधिक मंजिला घर बनाता हैं तो यह शिरगुल महाराज के मंदिर से ऊंचा हो जाएगा, जो शिरगुल महाराज का अपमान होगा। यही कारण है कि यहां लोग एक मंजिला घर बनाकर रहते है। ऐसा बताया जाता है कि जिन लोगों ने दो मंजिला मकान बनाने का प्रयास किया। उन्हें अनहोनी का सामना करना पड़ा।
चूड़धार की मन्नत होती है पूरी…
पूर्वजों व बुजुर्गों की माने तो एक समय जब कोई व्यक्ति चूडधार नही जा पाता था तो वह यहीं से अपनी मन्नतें पूरी करते थे। जुईनिधार घाटी के शिखर पर जाकर चूड़धार चोटी सामने दिखाई देती हैं। यहां से मध्य हिमालय का भी एक मनमोहक नजारा देखने को मिलता है। चोटी के एक तरफ से उत्तराखंड तो दूसरी तरह से हिमाचल के जिला सोलन के कई क्षेत्र दिखाई देते हैं।
गर्मियों में सर्दियों का अहसास…
लोग इसलिए गर्मियों में यहां रहना पसंद करते है, क्योंकि यहां गर्मियों का अहसास नाम मात्र का होता हैं। ठंडी हवाओं के कारण यहां गर्मियों में भी सर्दियों जैसा मौसम बना रहता हैं।
यहां की काली मिट्टी फसलों के लिए उपजाऊ…
यहां पर मुख्य फसलें आलू, मटर, मक्का, लहसुन आदि उगाई जाती है। यहां की काली मिट्टी फसलों के लिए अधिक उपजाऊ हैं। लोग ज्यादातर यही फैसले यहां उगाते है। इसका पहला कारण यह हैं कि फसलों को अधिक सिंचाई की जरूरत नही पढ़ती। दूसरा यहां मौसम इतना शुष्क नही रहता कि फसलें सूख जाए।
ये हैं समस्याएं…
1. इतना खूबसूरत स्थान होते हुए भी यहां के लोगों को कुछ ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिस कारण लोग यहां नही रहना चाहते। इसमें सबसे पहला कारण है सड़क सुविधा। यहाँ रहने वाले लोगों को लगभग 6 किमी का सफर तय करना पड़ता हैं ऐसे में यदि कोई हादसा या कोई बीमार हो जाएं तो उसे समय पर इलाज या अस्पताल तक नहीं पहुंचाया जा सकता। दूसरा इतना दूर राशन भी पीठ पर उठाकर लाना पड़ता हैं।
2. गर्मियों में यहाँ पानी की समस्या भी गहराने लगती है हलाकि मौसम इतना शुष्क नही होता लेकिन भारी बर्फ़बारी के कारन यहां पाइप लाइन्स टूट जाती हैं। जिस कारण पेयजल की समस्या उत्पन्न हो जाती हैं।
उपायुक्त के साथ एसडीएम संगड़ाह डॉ विक्रम नेगी, डीएफओ रेणुकाजी श्रेष्ठानंद शर्मा तथा सहायक पर्यटन विकास अधिकारी सिरमौर राजीव मिश्रा आदि अधिकारियों की टीम ने घाटी का दौरा किया गया। पिउलीलाणी से करीब 4 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर उक्त अधिकारी चोटी पर पहुंचे। अधिकारियों का गत्ताधार लौटने पर स्थानीय लोगों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया।