शिमला, 13 जनवरी: 27 साल का वीरेंद्र बर्फ में फंसे लोगों को रेस्क्यू करने की जद्दोजहद में निकला था। होनी को कुछ ओर ही मंजूर था। वाहन के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की वजह से रीढ़ की हड्डी फ्रैक्चर हुई तो हरेक पुलिस कर्मी इलाज के लिए आर्थिक मदद जुटाने की कोशिश में लग गया। लेकिन सोमवार को वीरेंद्र ने दम तोड़ दिया। 2015 में भर्ती हुआ वीरेंद्र ही परिवार का इकलौता सपूत था। कांगड़ा के छोटा भंगाल के कोटीकोड के रहने वाले वीरेंद्र का एक डेढ़ साल का बेटा है।
शिमला की क्यूआरटी (Quick Response Team) के सदस्य के तौर पर तैनात रहे वीरेंद्र को सोशल मीडिया में शहीद का दर्जा दिया जा रहा है। मगर सरकार संवेदनहीन बनी हुई है। हालांकि, पुलिस महकमे ने अपने स्तर पर ही पुलिस जवान वीरेंद्र की पार्थिव देह को पूरा राजकीय सम्मान देने का फैसला लिया था। ये जानकर आपकी भी आंखें नम हो जाएंगी कि जब बैजनाथ के डीएसपी बीडी भाटिया अपने हाथों में तिरंगे को लेकर पत्नी को सौंपने जा रहे थे तो उनकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे, क्योंकि वहां मंजर ही ऐसा था। जवान की पत्नी दुल्हन के लिबास में थी।
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राजधानी से पहुंची पुलिस टीम के जवानों की भी आंखें भर आई थी। हर कोई यह सोच-सोच कर भी सिहर उठ रहा था कि मौत के आगोश में समाए पुलिस जवान की अनुबंध अवधि भी पूरी नहीं हुई थी। दीगर है कि इस बात पर भी बार-बार सवाल उठता है कि हर वक्त समाज के प्रहरी रहने वाले पुुलिस कर्मियों को ही 8 साल के अनुबंध की शर्त से ही क्यों गुजरना पड़ता है। जबकि अन्य विभागों में अनुबंध की अवधि 2-3 साल की है। सनद रहे कि पुलिस के जवान बर्फबारी में फंसे लोगों को निकालने के लिए जा रहे थे। इसी बीच चीनी बंगला के समीप पुलिस का वाहन फिसलकर खाई में जा गिरा। इसमें वीरेंद्र को गंभीर चोटें आई थी। जबकि दो जवान घायल हुए थे।
वैश्विक महामारी के दौरान पुलिस जवानों ने महीनों तक बगैर थके ही अपनी डयूटी की थी। इसके बाद बद्दी से पुलिस कर्मियों को कंपलसरी छुट्टी देने की शुरूआत हुई, ताकि वो भी अपनी थकान मिटा सकें। कुल मिलाकर दिवंगत पुलिस कांस्टेबल की मौत सरकारी सिस्टम पर कई सवाल छोड़ गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार सबक लेकर न केवल वीरेंद्र के परिवार को आर्थिक मदद मुहैया करवाएगी, बल्कि ऐसी परिस्थितियों में जवान को शहीद का दर्जा मिलेगा। साथ ही पुलिस कर्मियों की अनुबंध अवधि को घटाया जाएगा।