सचिन ओबराय/पांवटा साहिब
26 साल की उम्र से नगर परिषद की राजनीति(Politics) में सक्रिय संजय सिंघल हार कर भी बाजीगर बने हैं। बेहद ही साहसिक व दबंग कदम उठाते हुए दिसंबर 2019 में अपनी ही नगर परिषद(Municipal Council) के भ्रष्टाचार को उजागर किया था। यही कारण माना जा रहा है कि इस बार तमाम ताकतें सिंघल को हराने में भी जुटी थी। बावजूद इसके जीत-हार के बीच 7 वोटों का अंतर रहा। फ्लैश बैक में जाकर देखें तो पता चलता है कि दिसंबर 2019 में नगर परिषद के कथित भ्रष्टाचार (Corruption) से जुड़ा वीडियो वायरल हुआ था। इसके बाद जमकर हंगामा हुआ।
सिंघल इस बात से बेखौफ रहे कि वो अपने ही पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे हैं। बैठक में हंगामा हुआ तो मजबूरन तत्कालीन अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को इस्तीफा (Resign) देना पड़ा था। गौरतलब है कि भ्रष्टाचार के मुददे(Issue) पर नगर परिषद की बैठक में जमकर तोड़ फोड़ भी हुई थी।
पार्टी नेता इस बात से खफा थे कि सिंघल इस मामले को तूल दे रहे हैं। लेकिन वो बेपरवाह होकर इस मामले को उठाते रहे। आरोप था कि अध्यक्ष का पति व उपाध्यक्ष मिलकर भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहे हैं। यही बात सिंघल को नागवार गुजरी थी।
खैर, ये तो पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने सिंघल को टिकट तो दिया, लेकिन अंदरखाते कोई समर्थन(Support) सिंघल के साथ नहीं था। 2010 में शहरी निकायों के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के चुनाव परोक्ष तौर पर हुए थे। सिंघल ने 1600 वोटों के अंतर से अध्यक्ष पद का चुनाव जीता था। इसे हिमाचल में सबसे बड़ा अंतर भी माना गया था। चूंकि, हार का अंतर 7 का रहा है, यही कारण है कि शहर में इस बात की चर्चा आम है कि वो हारकर भी बाजीगर बने हैं।
ये है पृष्ठभूमि…
पहली बार 1998 में नगर परिषद में सिंघल को नामांकित पार्षद बनाया गया था। 2000 में पत्नी नीलू सिंघल पहली बार निर्वाचित हुई। इसके बाद सिंघल ने जीत की हैट्रिक लगाई। इस बार भी भाजपा ने टिकट दिया मगर मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा। इसमें एक बार अध्यक्ष पद का सीधा चुनाव भी रहा है, जिसमें सिंघल ने शानदार जीत हासिल की थी।
क्या बोले…
सिंघल का कहना है कि वो चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे। 4 दिसंबर को पिता का निधन हुआ था। 16 दिसंबर तक घर पर ही रहे। इसके बाद कई दिन तक स्वास्थ्य ठीक न होने की वजह से बैड रैस्ट (Bed Rest) भी किया।
पार्टी ने ही चुनाव लड़ने का आदेश दिया था। महज, 6 दिन ही चुनाव प्रचार किया। तब तक उन्हें चुनाव हरवाने के लिए कई तरह की रणनीतियां तैयार कर ली गई थी। उन्होंने कहा कि वो कतई भी मायूस नहीं हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज उठाते रहेंगे।