शिमला, 01 जनवरी : कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्तियों पर सवाल खड़े किए हैं। पार्टी ने राज्यपाल से नियुक्तियों की जांच की मांग उठाई है।प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने आरोप लगाया है कि प्रदेश विश्विद्यालय के कुलपति एक विशेष एजेंडे के तहत कार्य कर रहें है और विश्विद्यालय का पूरी तरह से भगवाकरण किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इसकी जांच नही करवाई गई तो कांग्रेस सत्ता में आते ही इन नियुक्तियों की जांच करेगी और दोषियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करेगी।
शुक्रवार को पत्रकार वार्ता में राठौर ने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर चुप बैठने वाली नही। उन्होंने आरोप लगाया कि एक विशेष एजेंडे के तहत विश्विद्यालय को राजनीति का अखाड़ा नही बनने दिया जाएगा।
राठौर ने हाल ही में हुई नियुक्तियों का पूरा विवरण देते हुए कहा कि प्रदेश विश्वविद्यालय में सितम्बर 2020 से विभिन्न विभागों में चल रही शिक्षकों के पदों पर भर्ती में यूजीसी की गाईडलाईनस की पूरी तरह अवेहलना की जा रही है। इन नियुक्तियों की पूरी जांच होनी चाहिये। उन्होंने महामारी के समय जल्दबाजी व अफरातफरी में की जा रही इन नियुक्तियों पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए विश्विद्यालय की मंशा पर प्रश्न चिन्ह लगाया।
राठौर ने कहा कि प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर एवं सहायक प्रोफेसर की नियुक्तियों के आवेदन पत्रों की छानबीन हेतू समस समय पर यू जी सी की ओर गाईडलाईनस जारी की जाती हैं। यूजीसी की गाईडलाईनस को पुरी तरह नजरअंदाज करते हुये विश्वविद्यालय प्रशासन ने जानबूझ कर सोशोलाजी और अर्थशास्त्र विभाग में शिक्षक भर्ती के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया जिसमें इन विभागों में नियुक्त नियमित शिक्षकों को दरकिनार करते हुये बाहर से सेवानिवृत शिक्षकों को अधिमान दिया गया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी व अर्थशास्त्र विभाग में भी आवेदन पत्रों की छानबीन के लिए गठित समिति में भी सेवानिवृत शिक्षकों को ही शामिल किया गया।
राठौर ने कहा कि सामान्य प्रक्रिया में इन पदो के विज्ञापन एक वर्ष के लिए होता है परन्तु विश्वविद्यालय ने इस समय अवधि के बाद इसे जानबूझ कर अतिरिक्त छह महिनों के लिए आगे बढ़ा दिया। भारत सरकार के दिशा निर्देशानुसार संस्थान में कोविड काल में सरकार की पूर्व अनुमति के बगैर किसी भी नई नियुक्ति पर पूर्ण प्रतिबंध था। राठौर ने कहा कि चयन समिति के समक्ष प्रस्तुत हुये बिना ही कुछेक ऐसे शिक्षकों को जो कि पूर्व में किन्हीं निजि संस्थानों में कार्यरत थे] उनकी पूर्व की सेवाओं का लाभ देते हुये उन्हें पदोन्नति एवं वित्तीय लाभ देकर विश्वविद्यालय पर भरी आर्थिक बोझ डाला गया है।