रामपुर बुशैहर/मीनाक्षी भारद्वाज : यदि प्रकृति को नजदीक से जानना चाहते हैं तो हिमाचल प्रदेश का सबसे पिछड़ा क्षेत्र “काशापाट” बेहतरीन स्थल है। क्षेत्र चारों तरफ ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ है। पहाड़ियों के बीच मे मौजूद काशापाट पंचायत के ग्रामीण अपना बसेरा करते हैं।
यह हिमाचल में एक ऐसा क्षेत्र है, जहां पर आसपास सिर्फ पहाड़ ही पहाड़ दिखाई देते है। ऐसा प्रतीत होता है कि काशापाट के अलावा कोई दुनिया नहीं है। चारों तरफ पहाड़ों से घिरा होने के कारण यहां के लोग आज भी अधिकतर पारंपरिक अनाज का इस्तेमाल अधिक करते हैं। जिसे वह अपने खेतों मे पैदा करते हैं। ग्रामीण आज भी अनाज को सुरक्षित रखने के लिए लकड़ी से बने खठार का प्रयोग करते हैं। जहां पर सालों साल खठार मे अनाज सुरक्षित रहता है। इसके साथ काशापाट मे साथ लगते जंगलों में कई प्रकार की दुर्लभ प्रजाति की जड़ी बूटियां भी पाई जाती हैं। जिनमें गुच्छी, नाग-छतरी, सुगंधित जड़ी बूटियां शामिल है, जिनका इस्तेमाल करते हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि यहां की लाइफ काफी दयनीय है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों डॉक्टर तो छोड़ो पिने के लिए पानी देने वाला भी कोई नहीं हैं। वहीं गांव में सिंचाई के लिए पानी छोड़ने वाले फिटर भी नहीं हैं । नेटवर्क की समस्या है, वहीं घरों के नलों मे पानी 6 महीने तक नहीं आता है। ऐसे मे ग्रामीण गंदा पानी पीने पर मजबूर हो जाते हैं। सेवन पर बीमारी का शिकार हो रहे हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि वह सर्दी के मौसम में लगभग 6 महीने तक राशन व अन्य वस्तुओं का प्रबंध अपने अपने घर पर रखतें है। काशापाट मे सडक का निर्माण कार्य किया जा रहा है। एक किलोमीटर सडक़ का निर्माण रह गया है। पाट तक सडक का निर्माण कार्य किया गया है। लेकिन वाहनों की आवाजाही नामात्र की होती है। ऐसे में यहां के ग्रामीण अपने भारी सामान को ढोने के लिए खच्चरों का इस्तेमाल करते है। घर के राशन से लेकर सेब की पेटियों को वाहनो तक खच्चर के द्वारा लाए जाते हैं।