नाहन, 4 दिसंबर: नौहराधार तहसील के देवना गांव के प्रसिद्ध पर्यावरणविद मीन सिंह पुंडीर ने बीती रात 12 बजे अपने निवास स्थान फागणी में आखरी सांस ली। आधार कार्ड के अनुसार मीन सिंह पुण्डीर की उम्र 103 वर्ष थी, जिन्होंने निरोग आयु पाई।
बाल्यकाल से ही मीन सिंह पुंडीर को पर्यावरण से इतना लगाव था कि उन्होंने महज 13 वर्ष की आयु से ही अपनी मलकीयत व सरकारी भूमि पर विभिन्न प्रजातियों के असंख्य पौधों को रोपित किया, जिन्होंने आज घने जंगल की सूरत अख्त्यार कर ली हें।
भतीजे सुरेन्द्र पुण्डीर ने बताया कि मीन सिंह पुंडीर की असाधारण उपलब्धि के लिय राज्य सरकार ने जिलाधीश के माध्यम से वर्ष 2018 में गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया था। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध संस्था हिमोत्कर्ष ने वर्ष 2019 में दिवंगत मीन सिंह पुंडीर को उत्कर्ष्ट पर्यावरणविद के सम्मान से सम्मानित किया था।
स्थानीय पंचायत प्रधान सत्या देवी, पूर्व प्रधान ब्रह्मानंद शर्मा, मोहन लाल चौहान विपता राम पुंडीर, जिला परिषद सद्स्य बेलमंती पुंडीर, पंचायत समिति सद्स्य हेत राम भारद्वाज तथा पर्यावरण संस्थाओ ने मीन सिंह पुंडीर के देहांत पर शोक व्यक्त किया है। कहा कि पुंडीर के देहांत से एक युग का अंत हो गया है।
देहांत से पूर्व भी मीन सिंह पुंडीर ने अपने बेटो से उनके अंतिम संस्कार पर शमशान घाट पर एक देवदार का पौधा लगाने को कहा था। जेष्ठ बेटे पृथ्वी सिंह पुंडीर ने कहा कि पिता के दिखाए मार्ग पर चलेंगे। खैर,एक बेमिसाल पर्यावरणविद ने संसार को त्याग दिया है। उन्हें राष्ट्रीय पटल पर वो पहचान नहीं मिल पाई जिसके वो हक़दार थे। मगर जब तक उनके लगाए वृक्ष रहेंगे तब तक उनकी आत्मा सकून महसूस करेंगी साथ ही आने वाली पीढ़ियाँ भी याद करेंगी।
ये रही उपलब्धियां:
दिवंगत पुंडीर को पौधारोपण एक जुनून था। जीवन में हौसले के आगे बुढ़ापे को हराकर एक मिसाल कायम की थी। 26 जनवरी 2018 को नाहन के चौगान मैदान में सम्मानित करने से पहले नौहराधार के प्रशासन ने एक रिपोर्ट मांगी थी। इसमें पूछा गया था कि वास्तव में धरातल पर मीन सिंह पुंडीर ने कितने पौधों को रोपित किया है। रिपोर्ट में पाया गया था कि मीन सिंह ने करीब एक लाख पौधे लगा चुके है। जिनमें से लगभग 30,000 पेड़ बन चुके हैं। इसमें देवदार,बान, चीड़ व रुबीना के पौधे शामिल हैं। इसके अलावा बागवानी के क्षेत्र में भी उन्होंने सेब के बगीचे को तैयार किया है।
बता दें कि मौसम के मुताबिक जब देवदार व बान के बीज पेड़ों से गिरते थे तो उन्हें मीन सिंह एकत्र कर लेते थे ताकि इन्हें दोबारा पौधे के रूप में तैयार किया जाए। अस्सी सालो से वो पौधारोपण में लगे रहे। धीरे-धीरे जुनून बढ़ गया। जंगल में ही अपना एक घर भी बनाया, ताकि चारों दिशाओं में रोपित पौधों पर सटीक नजर भी रख सके। उनके प्रयासों से इस समय उनके पैतृक क्षेत्र में कहीं पर भी बंजर भूमि नहीं है।