कुल्लू, 20 नवंबर : अटल टनल के निर्माण के बाद ऐसा माना जा रहा था कि लाहौल घाटी के लोगों की परेशानियां दूर हो गई है। जनजातीय जिला लाहौल स्पीति के लोग सर्दियों में काफी परेशानियों से जूझते रहे हैं, लेकिन अटल टनल के निर्माण के बाद उम्मीद लगाई जा रही थी कि इन लोगों का जीवन काफी हद तक बेहतर हो जाएगा। लेकिन विश्व की सबसे अधिक ऊंचाई पर बनी अटल टनल भी रोहतांग घाटी में स्थित 3 गांव कोखसर, डिंफुक और रामथंग के लोगों की स्थिति में सुधार ना ला सकी। हालत यूँ हो गई है कि टनल के निर्माण के बाद भी इन लोगों को अपने गांव से पलायन करना पड़ा है।
अक्सर सर्दियों के दिनों में अधिक बर्फबारी होने और सुविधाओं का अभाव होने के कारण इन 3 के लोग यहां से पलायन करते हैं ताकि सर्दियों के मौसम में उन्हें बीमारी इत्यादि का समय पर उपचार मिल सके। टनल निर्माण के बाद उम्मीद जाहिर की जा रही थी गांव के लोगों को पलायन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस बार भी लोग गांव से पलायन कर रहे हैं। इस बार भले ही अटल टनल रोहतांग से लाहौल घाटी 12 महीने कुल्लू मनाली से जुड़ी रहेगी, लेकिन इन तीन गांवों में सुविधाओं के अभाव के कारण ग्रामीणों को पलायन ही करना होगा।
अब तक इन तीनों गांवों के करीब 75 फीसदी लोग पलायन कर चुके हैं, बाकि बचे दिसंबर महीने तक गांव छोड़कर निकल जाएंगे। उसके बाद वे मई जून में ही अपने गांव का रूख करेंगे। हालांकि ग्रामीणों की मानें तो अगर उन्हें गांव में सुविधाएं मिल जाए तो वे अपने गांव में बर्फ के बीच बसे रह सकते हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव में पलायन करना उनकी मजबूरी बन जाती है।
कोखसर पंचायत के पूर्व प्रधान अमर का कहना है कि ये तीन गांव सुविधाओं के अभाव में है। यहां न तो स्वास्थ्य सुविधाएं हैं और न ही आपातकालीन के दौरान हैलीकाप्टर आदि की लैंडिंग के लिए हैलीपैड। कोखसर के पास हालांकि कुछ वर्ष पहले हैलीपैड भी सैंक्शन हुआ लेकिन आज तक फाइलों में ही दफन रह गया। जबकि स्वास्थ्य सुविधा के लिए पीएचसी भी सैंक्शन है, लेकिन अभी तक खुली नहीं। ऐसे में यहां स्वास्थ्य सुविधाओं और आपातकालीन के समय किसी तरह की हवाई सेवाओं की संभावनाएं भी नहीं है। ऐसे में लोग समय रहते ही गांव छोड़कर निकल जाते हैं और उसके बाद मई -जून में अपने घरों का रूख करते हैं।
लाजमी तौर पर जेहन में यह भी सवाल उठा होगा कि आखिर यह लोग सर्दियों में जाते कहां है। तो बता दे कि लाहौल घाटी के इन 3 गांव के लोग पलायन कर नाली, कटराईं, कुल्लू, मौहल, शमशी, भुंतर, कलैहली आदि क्षेत्रों में सर्दियां बिताते हैं। इन लोगों में तक़रीबन 60 फ़ीसदी लोगों ने इन स्थानों पर भी घर बना लिए हैं, लेकिन बाकी 40% लोग किराए के कमरे लेकर यहां सर्दियां बिताते हैं
तीन गांवों में बसती हैं चार सौ के करीब आबादी
अमर का कहना है कि इन तीन गांवों में करीब चार सौ की आवाीदी बसती है। जिसमें घरों की बात करें तो कोखसर में 21, डिंफुक में 15 और रामथंग में 12 घर हैं। लेकिन सर्दियों के मौसम में इन घरों को छोड़कर निकलना पड़ता है। उनकी माने तो हालांकि अब बर्फ कम पड़ती है, जिसमें अब 5-6 फुट ही रहती है लेकिन सुविधाएं न होना लोगों के पलायन का मुख्य कारण है। एक समय यह भी था जब 10 फुट से अधिक बर्फ गिरती थी।
इन स्थानों के लिए पलायन करते हैं लोग लाहौल घाटी के इन तीन गांवों के लोग पलायन कर मनाली, कटराईं, कुल्लू, मौहल, शमशी, भुंतर, कलैहली आदि क्षेत्रों में सर्दियां बिताते हैं। जानकारी है कि सर्दियों में पलायन करते करते अब तक इन गांवों के करीब 60 फीसदी लोगों ने इन स्थानों में घर भी बना लिए हैं लेकिन बाकि बचे 40 फीसदी लोग किराए के कमरे लेकर सर्दियां बिताते हैं।