संगड़ाह, 08 नवंबर : हिमाचल के विभिन्न विकसित क्षेत्रों में बेशक बरसों पहले पानी से चलने वाले पारंपरिक घराट (Water Mill) लुप्त हो चुके हों। मगर उपमंडल संगड़ाह के दूरदराज के गांव सिऊं व पालर आदि में सदियों बाद भी घराटों का वजूद कायम है। बिना सरकारी मदद (Help) अथवा ऋण (Loan) के लगाए गए घराट कुछ परिवारों के लिए स्वरोजगार (Self employment) का साधन भी बने हुए है।
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नदी-नालों के साथ बसे गांवो में हालांकि बिजली की चक्कियां (Electric mills) होने के साथ-साथ आसपास के कस्बों से ब्रांडेड कंपनियों (Branded Companies) के आटे की सप्लाई भी होती है। मगर अधिकतर ग्रामीण अपने अनाज घराट में ही पिसवाना पसंद करते हैं। न केवल इन्हीं गांव (Village) के लोग बल्कि अन्य गांवों, कस्बों तथा शहरी इलाकों में रहने वाले कुछ साधन संपन्न लोग (Resourceful) भी समय मिलने पर इन छोटे-छोटे घराटों से अनाज पिसवा कर घर ले जाते हैं।
सिऊं के घराट मालिक रघुवीर सिंह ने बताया कि, कईं पीढ़ियों से घराट उनके परिवार की आय का मुख्य जरिया बना हुआ है। बातचीत में रघुवीर सिंह ने बताया कि आजादी के बाद 1950 में उनके दादाजी को घराट का पट्टा (Lease) मिला था तथा अब तक तहसील कार्यालय संगड़ाह अथवा नंबरदार को इसका राजस्व (Revenue) जमा करवाते हैं। बहरहाल क्षेत्र में घराट का वजूद कायम है।