कुल्लू, 25 अक्तूबर : ऐतिहासिक मैदान ढालपुर में इस बार चुनिंदा देवी-देवताओं के आगमन के बाद भगवान रघुनाथ की रथयात्रा शुरू हुई। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज हो गया है। यह उत्सव 31 अक्तूबर तक चलेगा। इस उत्सव के आगाज पर भगवान रघुनाथ अपनी पालकी में सुलतानपुर स्थित अपने मंदिर से अपने हारियानों के साथ ढालपुर मैदान पहुंचा।
जहां रथ को सजाया गया था। यहां देव रस्में निभाने के बाद जैसे ही साथ लगी पहाड़ी से भेखली यानि भुवनेश्वरी माता ने रथ यात्रा को झंडी दिखाई तो वैसे ही रथ यात्रा शुरू हुई। सौ के करीब लोगों ने रथ को रस्सों के सहारे खींचा और इसके साथ ही रथ के दोनों तरफ देवी देवता भी अपने हारियानों के कंधों पर रथ के साथ चले। रथ को चुनिंदा लोगों ने खींचकर अस्थाई शिविर तक पहुंचाया। यहां भगवान रघुनाथ अपने अस्थाई शिविर में सात दिनों तक रहेंगे। उसके बाद 31अक्टूबर को यहां से लंकाबेकर के साथ लगते पशु मैदान तक रथ यात्रा होगी और उसके बाद ही उत्सव संपन्न होगा। गौर रहे कि घाटी में देवताओं की दादी की जाने वाली माता हिडिंबा की अहम भूमिका होती है, उसके बगैर दशहरा उत्सव अधूरा माना जाता है। कुल्लू के राज दरबार के साथ देवी हिडिंबा का इतिहास है। देवी हिडिंबा ने ही कुल्लू के प्रथम राजा विहंगमणिपाल को गांव में आतंक फैलाने वाले पीति ठाकुरों का नाश करके उन्हें राजा बनाया था।
ये देवी देवता पहुंचे दशहरा उत्सव में भाग लेने
इस उत्सव में देवी हिडिम्बा ढुंगरी, नग्गर की देवी, जमलू देवता पीज, बिजली महादेव, रैला का लक्ष्मी नारायण देवता और देवता गौहरी, नाग धूंबल हलाण भाग लेने पहुंचे हैं। जिन्होंने सबसे पहले सुबह भगवान रघुनाथ के मंदिर पहुंचकर रघुनाथ के मंदिर में माथा टेका और उसके बाद ढालपुर में अपने अपने अस्थाई शिविरों की ओर रवाना हुए। जबकि उसके बाद रथयात्रा का हिस्सा बने।
सैंकड़ों देवी देवता लेते थे भाग
उत्सव के इतिहास के मुताबिक इस उत्सव में सबसे अधिक 365 देवी देवताओं की उपस्थिति लगी है। हालांकि देवताओं की संख्या समय अनुसार घटती और बढ़ती रही है। लेकिन इस बार दस से कम देवी देवताओं के आगमन से उत्सव अलग ही स्वरूप में नजर आया है। इस नजारे को देखने के लिए हजारों लाखों की भीड़ पर भी नियंत्रण है।