भुंतर, 14 अक्तूबर : जो मासूम बच्चे आने वाले समय में देश के कर्णधार (Helmsman) बन सकते हैं वह आज सड़कों (Roads) पर भीख मांगने (Begging) व कबाड़ (Garbage) उठाने को मजबूर हैं। इनकी बच्चों को क्या मजबूरी है यही जाने। भुंतर में ब्यास नदी (River) किनारे रहने वाले झुग्गी झोपड़ी (Slum Hut) वालों के बच्चे पूरा दिन भीख मांगते फिरते हैं। वही कुछ एक बच्चे कवाड़ इकट्ठा करते नजर आएंगे। भुंतर के पुराना पुल के पास, बाजार में, सड़क किनारे पैदल चले राहगीरों, दुकानदारों व गाड़ी में सवार लोगों को भीख मांगने पर तंग करते देखे जा सकते हैं।
जबकि सरकार ने बच्चों को स्कूल में पढ़ाई के साथ दोपहर का खाना, स्कूल की वर्दी और किताबें फ्री प्रदान करने का प्रावधान (Provide) रखा है तब भी यह बच्चे स्कूल नहीं जाते। शायद इनके घर वालों ने इन्हें भीख मांगने के लिए छोड़ रखा है। झुग्गी झोपड़ी वाले स्वयं भी दिन को भीख मांगते हैं और फिर मटन के साथ लाल परी खूब करते हैं। वो नन्हें हाथ जो किताबों के लिए उठने चाहिए थे, जिनके हाथों में पेंसिल, कॉपी, किताब और कंधे पर स्कूल बैग लटकना चाहिए था, वो हाथ आज उम्मीदों का कटोरा लेकर चंद पैसों के लिए भीख मांगने को मजबूर हैं।
जबकि केंद्र व प्रदेश सरकार ने अनाथ बच्चों तक के लिए योजनाएं चला रखी हैं ताकि बच्चों का भविष्य संवर सके। बावजूद इसके सड़कों पर कई ऐसे बच्चे भीख मांगते दिखाई देते हैं। जो भीख मांगने पर सरकार न ही पुलिस पूर्णतः रोक लगा पा रही। पढ़ने-लिखने की उम्र में भुंतर के चौक-चौराहों पर भीख मांगते बच्चे वाकई समाज के लिए शर्मनाक हैं। भुंतर शहर में दर्जनों की संख्या में बचपन भीख मांगता देखने को मिला है। जहां हंसने-खेलने की उम्र में आपको बच्चे सड़कों पर भीख मांगते दिख जाएंगे। सार्वजनिक स्थानों पर आपको ये बचपन भीख मांगता हुआ नजर आएगा। हर रोज ये मासूम सड़कों पर हाथ में कटोरा लिए मदद की आस लगाये दिखाई देते हैं। यूं तो भीख मांगना क़ानूनन अपराध है, लेकिन भुंतर में ऐसे नन्हें मासूम भीख मांगते नजर आ जाएंगे जिनकी पढ़ने लिखने और हंसने खेलने की दिन हैं।