नाहन, 25 सितंबर : वैश्विक महामारी में एक सामान्य धारणा पैदा हो चुकी है। इसके मुताबिक गंभीर बीमारी से पीडि़त लोग कोरोना की वजह से दुनिया को अलविदा कह रहे हैं। मगर हिम्मत व साहस के दम पर जंगलाभूड़ के रहने वाले 50 वर्षीय सुशील कुमार शर्मा ने इसे गलत साबित किया है। 2014 में किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले सुशील की 7 सितंबर को कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आ गई। परिवार का हरेक सदस्य सहम गया। उसी शाम सुशील कुमार शर्मा को सराहां के कोविड हेल्थ सैंटर भेज दिया गया। हालत गंभीर हो गई। 10 सितंबर को आईजीएमसी रैफर कर दिया गया। चूंकि सुशील कुमार हिम्मत व हौंसले से सरोबार थे, लिहाजा कोरोना को मात तो देनी ही थी।
18 सितंबर को दोबारा रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो डीडीयू शिफ्ट कर दिया गया। 24 सितंबर को सैंपल की रिपोर्ट नेगेटिव आई। इसके बाद आज घर लौट आए हैं। सुशील कुमार शर्मा ने कहा कि किडनी फेल होने के बाद भी कोरोना जैसे घातक बीमारी को मात देकर लौटा हूं। उन्होंने कहा कि ट्रीटमेंट अच्छा मिला। साथ ही हिम्मत नहीं टूटने दी। गौरतलब है कि शहर के रामकुंडी के रहने वाले 47 वर्षीय नरेंद्र तोमर ने भी इस धारणा को गलत साबित कर दिखाया था। एक किडनी व कैंसर से पीडि़त होने के बावजूद नरेंद्र ने हौंसले से कोरोना को मात देने में सफलता अर्जित की थी।
कुल मिलाकर यह साबित होता है कि जीवन की ललक होनी चाहिए, बड़ी से बड़ी आपदा को भी टाला जा सकता है। दीगर है कि नरेंद्र तोमर का पूरा परिवार ही कोरोना की चपेट में आया था। पूरे परिवार ने ही कोरोना को हरा दिया।
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