नाहन/पांवटा साहिब, 27 अगस्त : भगवान परशुराम जी की जन्मस्थली श्री रेणुका जी में एक सिद्ध पुरूष व निर्माण गुरू जी महाराज ने बरसों पहले ही समाधि ले ली थी। मगर उनके परम शिष्य प्रेम चंद सागर जी ने चंद रोज पहले 93 साल की उम्र में संसार को खामोशी से त्याग दिया है। पांवटा साहिब स्थित बद्रीपुर में अपने पैतृक आवास पर ही 23 अगस्त को अंतिम सांस ली। 24 अगस्त की सुबह मोक्ष धाम में अंत्येष्टि की गई।
22 तारीख की रात कुछ अस्वस्थ महसूस करने लगे। परिवार के सदस्य उन्हें लेकर नाहन मेडिकल कॉलेज भी पहुंचे। इसी बीच उन्हें पीजीआई रैफर कर दिया गया। चिकित्सकों की सलाह पर 23 अगस्त की तडक़े वापस आ गए। इसके बाद परिवार को ऐसा प्रतीत हुआ कि वो बिलकुल ठीक हैं। खाना खाने के अलावा दूध इत्यादि का भी सेवन किया। अचानक ही दोपहर बाद बैठे-बैठे ही प्राण त्याग दिए। परिवार की मानें तो उन्हें अपने जीवन में निर्माण गुरू जी की सेवा करने का लंबा मौका मिला। लगभग 20 से 30 साल तक निर्माण गुरू जी के सानिध्य में रहे। स्वाभाविक सी बात थी कि वो भी एक सिद्ध पुरूष की भांति ही रहे।
यकीन कीजिए, स्व. प्रेम चंद सागर जी को जीवन के अंतिम 10-15 सालों में आंखों से दिखाई नहीं देता था। बावजूद इसके उन लोगों को स्पर्श से ही पहचान लेते थे, जो पहले उनके संपर्क में आए हों। श्री रेणुका जी झील के किनारे निर्माण आश्रम के संचालन में भी वो अहम भूमिका निभाया करते थे। दिवंगत प्रेम चंद सागर जी जब तक जीवन में पूरी तरह से शारीरिक तौर पर स्वस्थ रहे, तब तक दीन दुखियों की मदद करने में भी पीछे नहीं रहे। करीब 6 साल पहले अपने बड़े बेटे के निधन की वजह से कुछ टूटे तो जरूर, लेकिन अपनी डगर से नहीं हटे।
अपनी वाणी व व्यवहार से हर किसी को प्रभावित करने में सक्षम दिवंगत प्रेम चंद सागर जी अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। परिवार की तीसरी पीढ़ी को भी जमकर आशीष दे गए हैं। उन्हें करीब से जानने वाले लोग शोक व्यक्त कर रहे हैं।
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