नाहन, 13 अगस्त : भारतीय सेना में शीर्ष रैंक तक पहुंचकर शहर को गौरवान्वित कर चुके रिटायर्ड मेजर जनरल अतुल कौशिक (Retd. Major General Atul Kaushik) ने एक बार फिर अपनी जन्मस्थली का मान बढ़ाया है। राज्य सरकार ने गुन्नुघाट के रहने वाले सेवानिवृत मेजर जनरल अतुल कौशिक को निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग (Private Educational Institution Regulatory Commission) के चेयरमैन का ओहदा सौंपा है। इस समय आयोग की कई मायनों में अहमियत है। इसका कारण यह है कि राज्य में प्रदेश के कई इलाके निजी क्षेत्र में शिक्षा का हब भी बने हैं। हालांकि सेना में 38 साल के कैरियर के दौरान उनकी झोली में बेशुमार उपलब्धियां हैं, लेकिन दो मर्तबा राष्ट्रपति पदक के अलावा तीन बार गैलेंटरी प्रशस्तिपत्र प्रमुख हैं। कर्नल पद पर रहने के दौरान आतंकियों से मुठभेड़ में जख्मी हो गए थे। टांग में गोलियां लगी थी। उस समय अग्रिम मोर्चे पर राष्ट्रीय राइफल को कमांड कर रहे थे।
1 जुलाई 2019 को सेना के हाई अल्टीटयूड वॉरफेयर स्कूल गुलमर्ग के कमांडेंट के पद से सेवानिवृत हुए थे। काफी अरसे तक यहां तैनाती के दौरान कई सराहनीय कार्य किए। बता दें कि सेना का ये स्कूल करीब 12 हजार फीट की ऊंचाई पर कठिन रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देता है। दिवंगत आरसी कौशिक व प्रतिभा कौशिक के घर जन्में बेटे का बचपन से ही रूझान देशभक्ति के प्रति रहा। उल्लेखनीय है कि इस पद पर उनकी नियुक्ति तीन साल के लिए की गई है। रिटायरमेंट के बाद अपना जीवन एक किसान के तौर पर शुरू किया है।
उधर एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में सेना के शीर्ष पद से रिटायर अतुल कौशिक ने कहा कि 38 साल तक सेना में सेवा करने के बाद अब उन्हें प्रदेश की सेवा का मौका मिला है। उनका कहना था कि जो दायित्व उन्हें सौंपा गया है, उसकी कसौटी पर वो हर हाल में खरा उतरने का प्रयास करेंगे।
ये भी है खास उपलब्धि….
साल 2017 में हाई अल्टीटयूड वॉरफेयर स्कूल के प्रशिक्षुओं ने मेजर जनरल के नेतृत्व में ही कश्मीर में 17,350 फीट की ऊंचाई पर स्थित युद्धस्तर पर चढ़ाई करने में सफलताा अर्जित की थी। कश्मीर-लेह सीमा पर इस चोटी को सेना ने पहली बार तलाशा था। अहम बात यह थी कि 89 लोगों का एक साथ इस चोटी पर चढऩा असाधारण बात थी। 27 से 29 सितंबर तक इस अभियान का हिस्सा भी अतुल कौशिक बने थे।
अमूमन इस स्तर के सैन्य अधिकारी ऐसे कठिन अभियान का हिस्सा नहीं बनते, लेकिन वो 9 ट्रेनी अधिकारियों व 79 प्रशिक्षुओं के साथ खुद भी शामिल हुए। बर्फ से ढकी रहने वाली चोटी के ईर्द-गिर्द गलेशियर का खतरा साए की तरह पीछा करता रहा, लेकिन भारतीय सेना की टोली का हौंसला बुलंद रहा था। इस अभियान का मकसद प्रशिक्षुओं को एडवांस ट्रेनिंग भी था। हिम नदियों व बर्फीले मैदान के बीच से गुजरते रास्ते को विश्वासघाटी भी कहा जा रहा था। बता दें कि सरकार ने आयोग के सदस्य के तौर पर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रोफैसर कमलजीत सिंह को नियुक्त किया है।