मंडी (वीरेंद्र भारद्वाज) :
जिला में नदी नालों में मछली पकड़ने वाले मछुआरों को अब अपनी रोजी रोटी की चिंता सताने लगी है। कारण है कोरोना, जिसके कारण मछुआरों का काम लाॅकडाउन के चलते बिल्कुल बंद रहा और जब लाॅकडाउन में थोड़ी राहत मिली तो मछलियों के प्रजनन समय के चलते मतस्य आखेट पर अगस्त महीने तक प्रतिबंध है। जिले के बल्ह घाटी के सोयरा गांव में सिर्फ मछली पकड़कर अपने परिवार का पेट पालने वाले दर्जनों मछुआरों को रोटी की चिंता सताने लगी है। मछुआरों के अनुसार उन्हें लाॅकडाउन में भी कोई सहायता या राहत राशि नहीं दी गई और न ही उन्हें मछली पकड़ने के लिए जाल बनाने के लिए विभाग की ओर से धागा व अन्य सामाग्री नहीं मिली। जिसके कारण उन्हें जाल बनाने आदि के लिए अपनी जेब से ही पैसे खर्च करने पड़ रहे है।
ये सभी मछुआरे लाइसेंस धारक हैं और इन्हें बाकायदा नदी नालों में मछली पकड़ने की परमीशन भी है। लेकिन अब कोरोना संकट के समय में इन्होंने मीडिया के माध्यम से सरकार, विभाग व जिला प्रशासन से मदद करने की गुहार लगाई है। इसके साथ ही इन्होंने रेजर वायर के मछुआरों के समान इन्हें भी राहत पैकेज देने की सरकार से मांग उठाई है ताकि इनके परिवार पर आए संकट को टाला जा सके।
बालकराम ने बताया कि जिला में लगभग 200 परिवार हैं जिनका व्यवसाय मछली पकड़ना है और उन सभी को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वहीं जब इस बारे में मत्स्य विभाग मंडी मंडल के सहायक निदेशक से बात की गई तो उन्होंने बताया कि किसी भी आपात की स्थिति में मुआवज़े का प्रावधान केवल रेजर वायर/बांध में पंजीकृत मछुआरों को ही है।
मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक खेम सिंह ठाकुर ने बताया कि नदी नालों में मछली पकड़ने वाले मछुआरे लाइसेंसशुदा तो हैं लेकिन वे असंगठित है और सरकार उनसे किसी प्रकार की रोऐल्टी भी नहीं लेता है। जिस कारण इन्हें मुआवज़े की राशि नहीं मिल सकती। उन्होंने बताया कि ऐसे मछुआरों के लिए बीमा सुविधा है जिसका मछुआरे व मछली पालन से जुड़े किसान लाभ उठा सकते हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे मछुआरों का मामला उनके व विभाग के ध्यान में है लेकिन इनके लिए अभी तक सरकार की तरफ से किसी प्रकार की सहायता उपलब्ध नहीं हुई है।