शिमला : हिमाचल प्रदेश में बुधवार को आधिकारिक तौर पर सेब सीजन( Apple season in Himachal) शुरू हो गया। कोरोना के साए के बीच इस बार राज्य में सेब सीजन का धमाकेदार आगाज नहीं हो पाया। पिछले कुछ दिनों से अर्ली वैरायटी(Early variety) का सेब हालांकि मंडियों में दस्तक दे चुका है। लेकिन इस बार बागवानों को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। मौसम की मार के बाद मजदूरों की किल्लत बागवानों(Gardeners) के लिए परेशानी का सबब बन गई है। सरकार भले ही नेपाल सहित बाहरी राज्यों से लेबर को सेब बाहुल्य क्षेत्रों में पहुंचाने का दावा करे, लेकिन अभी तक मजदूरों का बंदोबस्त नहीं हो पाया है। आलम यह है कि बागवानों को बगीचों से सेब तोडने से लेकर मंडी पहुंचाने तक के लिए मजदूर नही मिल रहे है। नेपाली मजदूर न होने के कारण बागवानो को खुद ही सेब तो तोड़ना पड़ ही रहा है साथ में सेब की पेटिया भरने के लिए भी मजदूर नही मिल रहे है। यंहा तक की सेब गे्रडिग पैकिंग(Gredig packing) की मशीनों पर भी मजदूर न होने के चलते बागवानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। हिमाचल में सेब की आर्थिकी चार हजार करोड़ के करीब आंकी जाती है।
सेब सीजन में मज़दूरों की कमी बागवानों की साल भर की मेहनत पर पानी फेर सकती है, हालांकि सरकार की तरफ से बागवानों को आश्वासन दिया गया है कि वक्त रहते मजदूरों का बंदोबस्त हो जाएगा। सेब सीजन की दस्तक के साथ प्रशासन भी तैयारियों का दावा कर रहा है,लेकिन अभी तक मज़दूरों का बंदोबस्त नही हो पाया है। वहीं इस बार सेब सीजन पर भी कोरोना का साया पडना लाजमी है, चूंकि आने वाले दिनों में मंडियों में उमड़ने वाली भीड़ का अंदाजा अभी से लोगों को सता रहा है। भले ही सोशल डिस्टेसिंग(Social distancing) से लेकर मास्क के इस्तेमाल तक के आदेश तो प्रशासन ने दिए हैं पर सेब सीजन में इन आदेशों की पालना कराना प्रशासन के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।
बागवानों पर साथ ही पेट्रोल और डीजल के बढ़े दामो की मार भी पड़ रही है। प्रशासन के आदेशों के बिना ही ट्रक और पिकअप चालकों ने किराया अधिक वसूलना शुरू कर दिया है । वही किराया बढने के आसार लगातार बने हुए हैं जिसका बोझ बागवानों और आम जनता पर पडने वाला है। देखा जाए तो इस बार हिमाचल का सेब सीजन कई चुनौतियों के साथ आया है। कोरोना के साये में बागवानों की अपनी चिंताएं और सरकार की अपनी, क्योंकि दोनों की आर्थिकी इसी सेब पर टिकी है, ऐसे में देखना ये होगा कि सरकार आने वाले दिनों में बागवानों की इस समस्या का कैसे समाधान करती है जबकि कोरोना बीमारी का खतरा अभी लगातार बना हुआ है।
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