सराहां (सिरमौर): ऐसी धारणा है कि सृष्टि के आरम्भ से ही भयावक शिला का भूरेश्वर महादेव से गहरा नाता है। यह भी किदवंती प्रचलित है कि भूरेश्वर महादेव आज भी देवता रूप से अपने पुजारी में प्रकट होते हैं, ताकि प्रजा दर्शन कर सके। वर्ष में देव ग्यास जिसमें हजारो श्रद्धालुओं को देव शक्ति से अपने पुजारी में आकर आशीर्वाद देते हैं। देवता उन भाई-बहन के अमर प्रेम को ग्यास के दिन उनकी रूहों को मिला कर पूर्ण करने का आशीर्वाद प्रदान भी करते हैं। इस साल दूसरा दर्शन देव शयनी एकादशी पर भूरेश्वर महादेव अपनी विशेष शिला से आशीर्वाद प्रदान किया।
बता दे कि इस शिला पर उतरना जान को जोखिम में डालने से कम नहीं है। फिर दूध व मक्खन को अर्पित करने के दौरान तो इस पर जान का जोखिम बढ़ जाता है। मगर दैवीय शक्ति से पुजारी इस कार्य को कर पाता है। बुधवार को देवशयनी महोत्सव पर भूरेश्वर महादेव मन्दिर में वर्ष का दूसरा आयोजन था । इस अवसर देव यात्रा में देवता अपने पूरे छत्र, त्रिशूल, चंवर को पुजारी के रूप में धारण कर अपनी शक्ति विशेष से शिला पर पहुंचे जहां अपने कारदारों के साथ देवशयनी उत्सव को पूर्ण किया। विशेष नियमों से पूर्ण होने वाली यह क्रिया देवता के मुख्य पुजारी डॉ0 मनोज शर्मा के रूप ने पूर्ण की।
मान्यता के मुताबिक भूरेश्वर महादेव देव शयनी उत्सव पूर्ण होने के बाद अब देवप्रबोधिनी एकादशी को भूरेश्वर महादेव योग निद्रा से उठेंगे। बताते है कि इस बार कोरोना की वजह से इस स्थान की की शुद्धि बनी रही, यह भी कारण रहा कि देव रिवायत को निभाया जा सका। अन्यथा स्थान पर भीड़-भाड़ की वजह से देवता अनुसार नियमो की पालना बेहद ही मुश्किल होती है।
बताते चले कि डॉ मनोज शर्मा मन्दिर भूर्सिंग के मोहतमिम ओर मुआफिदार सरकार से प्राधिकृत पुजारी है। महाराजा सिरमौर का राजवंश चलने के कारण महाराजा सिरमौर ने 12 रुपये मुआफी के रूप से सन्मानित किया जो चांदी जे रुपये थे पर आज चलने वाली मुद्रा में इन 12 रुपए से एक धूप की डब्बी नही आ सकती। इतनी महंगाई के होते हुए हजारो वर्षों से चले इस स्थान पर सैंकड़ो वर्षो से यही 12 रुपए सरकार दे रही है न कोई नजराना न कोई और मदद । फिर भी परम्पराओं का निर्वहन अपनी जान पर खेल कर पूर्ण देवता के आदेशानुसार पूरा किया जाता है। इन परम्पराओं को अनदेखी होता देखा जा रहा है, जिसमे एक व्यक्ति की जान जा सकती है इसे कोई प्रोटेक्शन या नियम सरकार यहाँ नही देख रही है।
डॉ. मनोज शर्मा कहा कि देवता के आदेश पर अनुष्ठान सफल रहा। उनका ये भी कहना था कि सरकार को ऐसी परम्पराओ को जीवित रखने के प्रयास करने चाहिए साथ ही शिल्ला पर उतरने वाले पुजारी की सुरक्षा को लेकर भी कदम उठाये जाने चाहिए।
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भाई-बहन के प्रेम की अनूठी गाथा...
क्षेत्र में प्रचलित किवदंतियों के अनुसार पजेरली गांव के भाई बहन पशु चराने क्ववागधार पर्वत श्रृंखला पर आते थे। जो अनजाने में स्वयंभू शिवलिंग के चारों तरफ घूमते थे। एक दिन भारी तूफान, वर्षा, ओलावृष्टि और बर्फबारी में पशु चराते समय उनका एक बछड़ा गुम हो गया। जब वह घर पहुंचे, तो सौतेली मां ने दोनों भाई बहन से पूछा बछड़ा कहां है। दोनों भाई बहन ने बताया कि बछड़ा गुम हो गया है। इस पर सौतेली मां ने कड़ाके की ठंड में दोनों को बछड़े को खोजने क्वागधार पर्वत शिखर पर भेज दिया।
पर्वत शिखर पर शिवलिंग के पास बछड़ा मिलने पर भाई ने बहन को घर भेज दिया। दूसरे दिन प्रात: जब पिता और बेटी बछड़े और पुत्र की खोज में शिखर पर पहुंचे तो शिवलिंग के पास बछड़े और लडक़े को निश्चल पाया, जो देखते ही देखते दिव्य शक्ति में अन्तर्ध्यान हो गए। वही सौतेली मां ने लडक़े की बहन का विवाह एक काने व्यक्ति के साथ ही कर दिया। काना व्यक्ति जब बारात लेकर वापस जा रहा था, तो बारात उसी रास्ते में गुजरी, जहां पर लडक़ी का भाई अदृश्य हुआ था। बहन ने उस स्थान पर डोली रुकवाई और भाई को याद किया। भाई को छोडक़र बहन ससुराल जाने को तैयार नहीं थी।
भाई के वियोग में बहन ने कथाड़ गांव की तरफ जाते हुए डोली से छलांग लगा दी और कुछ दूरी के बाद वह अन्तर्ध्यान होकर नीचे भाभड़ के घास के साथ पवित्र जल धारा के रूप में प्रकट हुई। बाद में यह जल प्रवाह देहि नदी के रूप से प्रसिद्ध हुए। आज इसी नदी से आसपास गांव में पेयजल की आपूर्ति होती है। भाई बहन द्वारा अनजाने में की गई शिव परिक्रमा के आशीर्वाद से शिवलोक को प्राप्त हुए। भाई-बहन कि इस प्रेम गाथा को हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा 1970 के दशक में आठवीं कक्षा की हिंदी पुस्तक पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया था।