मंडी (एमबीएम न्यूज): क्या आपने कभी ऐसा चिडिय़ाघर देखा है, जहां पर न आपको राज्यपक्षी देखने को मिले और न ही राज्य जानवर। अगर नहीं देखा तो चलिये हम आपको दर्शन करवाते हैं एक ऐसे चिडिय़ाघर के जिसका नाम तो चिडिय़ाघर है लेकिन यहां देखने लायक कुछ भी नहीं। हिमाचल प्रदेश के घने घने जंगलों में तो पशु-पक्षियों का जनजीवन खूब फलता-फूलता है, लेकिन वहां पर आपको इन्हें देखने का अवसर नहीं मिल पाता। इसके लिए प्रदेश सरकार ने चिडिय़ाघरों का निर्माण कर रखा है। लेकिन अगर चिडिय़ाघरों में भी आपको प्रदेश के जंगलों में पाए जाने वाले खूबसूरत वन्यप्राणीयों का दीदार न हो सके तो…।
जाहिर सी बात है कि आपको निराशा की हाथ लगेगी। कुछ ऐसी ही निराशा लोगों को तब होती है जब लोग मंडी जिला के तहत आने वाले रिवालसर चिडिय़ाघर का भ्रमण करते हैं। इस चिडिय़ाघर में मात्र 6 प्रजातियां हैं, जिसमें मुख्य रूप से दो भालू, एक सैहल, कुछ सांबर, चित्तल और हिरण शामिल हैं। न तो चिडिय़ाघर में राज्य पक्षी है न ही राज्य जानवर। यहां आने वाले लोग इसे चिडिय़ाघर मानते ही नहीं।
यही कारण है कि पर्यटक चिडिय़ाघर में कुछ ऐसे जानवरों और पक्षियों को शामिल करने का सुझाव देते हैं, जिन्हें देखने के लिये उन्हें बार-बार रिवालसर चिडिय़ाघर में आनापड़े। रिवालसर के इस चिडिय़ाघर का निर्माण वर्ष 1984 में हुआ था। वर्ष 2010 के करीब एक समय ऐसा भी आया जब इस चिडिय़ाघर को बंद करने का फरमान जारी हो गया, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के चलते इसे बंद नहीं किया जा सका। तब से लेकर अब तक इस चिडिय़ाघर के विस्तारीकरण की कोई प्रपोजल सरकार बना नहीं सकी है।
हालांकि विभाग कई बार विस्तारीकरण के बारे में सरकार को सुझाव दे चुका है। रिवालसर के चिडिय़ाघर का भ्रमण करने पर आप को 5 रुपए अदा करने पड़ते हैं और बाद में अहसास होता है कि यह पांच रुपए भी बेकार में ही खर्च कर दिये। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यही है कि जब तक इसका विस्तारीकरण नहीं किया जाएगा, तब तक इस चिडिय़ाघर को चिडिय़ाघर नहीं कहा जा सकता।