मंडी : कुछ काम ऐसे होते हैं जो कागजों में ही होते रहते हैं जबकि धरातल पर नजर नहीं आते। कुछ ऐसा ही बीते कई वर्षों से प्राचीन रिवालसर झील के साथ भी हो रहा है। रिवालसर झील को बचाने की योजनाएं वर्षों से कागजों में बन रही हैं, लेकिन धरातल पर कोई काम नजर नहीं आ रहा है। तीन धर्मों की संगम स्थली कहे जाने वाले रिवालसर शहर की पहचान खतरे में है। इस शहर को इसकी प्राचीन झील के कारण विश्व भर में जाना जाता है। लेकिन यही पहचान दिन प्रतिदिन मिटने की ओर अग्रसर हो रही है। कारण, काम सिर्फ कागजों में होना, धरातल पर नहीं।
वर्षों पहले जब रिवालसर झील में मछलियां मरने का सिलसिला शुरू हुआ तो उसी वक्त से इस झील के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराना शुरू हो गए थे। लेकिन शासन और प्रशासन ने इसे हल्के में लिया। नतीजा आज सभी के सामने है। रिवालसर झील की मौजूदा स्थिति की बात की जाए तो इसमें सिल्ट की मात्रा इतनी अधिक हो चुकी है कि इसका जलस्तर मात्र 10 से 15 फीट गहरा ही बचा है। जबकि झील का पानी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका है। पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई है जिस कारण मछलियां मर जाती हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि शासन और प्रशासन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे, जिस कारण झील अपना अस्तित्व खोती जा रही है। लेकिन लोगों के आरोपों के विपरित प्रशासन की सुनें तो यहां झील को बचाने के पूरे प्रयास हो रहे हैं।
डीसी ऋग्वेद ठाकुर की मानें तो झील को बचाने के लिए संबंधित विभाग पूरी जदोजहद कर रहे हैं। झील में जाने वाले नालों का आधुनिकीकरण करने और सिल्ट को झील में जाने से रोकने के लिए डेढ़ करोड़ की राशि खर्च की जाएगी जिसमें से 50 लाख की राशि स्वीकृत भी हो चुकी है। वहीं रिवालसर शहर में डेढ़ करोड़ की लागत से सिवरेज लाईन बिछाई जा रही है ताकि गंदगी झील में न जा सके। वहीं झील के साथ लगते नालों की दशा सुधारने का कार्य भी किया जा रहा है ताकि गंदगी झील में न जाए और ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। शासन और प्रशासन की तरफ से यह प्रयास वर्षों से किए जा रहे हैं लेकिन धरातल पर कोई भी कार्य नजर नहीं आ रहा है।
यही कारण है कि रिवालसर झील को बचाने के प्रयास सिर्फ कागजों में ही नजर आ रहे हैं जबकि धरातल पर सब नदारद है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अभी भी शासन और प्रशासन इस दिशा में अपने प्रयासों को धरातल पर उतारकर इस प्राचीन धरोहर को संजो कर रखेगा।