शिमला : राजनीति में समीकरण हर पल बदलते हैं। बदलती तस्वीर की अधिकारिक पुष्टि भी नहीं होती है। सत्तारूढ़ राजनीतिक दल भाजपा को संगठन के नए चीफ की तलाश है। एक दिन पहले तक विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल को मंत्रिमंडल की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था, मगर मंगलवार को नए मुखिया की तलाश ने एक अप्रत्याशित मोड़ ले लिया। इसके मुताबिक पार्टी अब विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल को मंत्री की बजाय संगठन का प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती है।
चर्चा के मुताबिक बिंदल का नाम फाइनल होने के बाद ही भाजपा अध्यक्ष के चुनाव को लेकर तिथि तय हुई है। 17 जनवरी को नामांकन होगा। 18 तारीख को चुनाव निर्धारित हुए हैं। अगर विधानसभा अध्यक्ष को भाजपा अध्यक्ष बनाया जा रहा होगा तो लाजमी तौर पर वो 17 जनवरी को नामांकन दाखिल कर देंगे। बात उस समय भी पुख्ता हो सकती है, यदि अगले दो-तीन दिन में विधानसभा अध्यक्ष के इस्तीफा देने की खबर आ जाए। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी 20 जनवरी को तय हुआ है। इसमें कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा को ही बागडोर मिलने की पूरी उम्मीद है। लाजमी तौर पर नड्डा की पसंद से ही हिमाचल को अगला प्रदेशाध्यक्ष मिलेगा।
बिंदल के प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में शामिल हो जाने का घटनाक्रम दिलचस्प ही है, क्योंकि दूर-दूर तक भी इस पद के लिए विधानसभा अध्यक्ष की चर्चा नहीं हो रही थी। अब सवाल यह भी उठता है कि आखिर पार्टी डॉ. बिंदल को ही प्रदेशाध्यक्ष क्यों बनाना चाहेगी। तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि बिंदल एक कुशल प्रबंधक तो हैं ही, साथ ही सरकार का किसी भी व्यक्ति से संवाद स्थापित करने में भी माहिर हैं। अटकलें यह भी हैं कि 70 के दशक से संघ से जुड़े रहने वाले डॉ. बिंदल इस समय मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के भी काफी करीब आ चुके हैं।
दीगर है कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल सोमवार रात लोहड़ी के पर्व पर ओकओवर पहुंचे थे। इस दौरान शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज भी नजर आए थे। दीगर है कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के लिए वीरेंद्र कश्यप, त्रिलोक जंवाल, राजीव भारद्वाज व रणधीर शर्मा के अलावा महेंद्र धर्मांणी व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नामों पर चर्चा चल रही थी। इसी बीच मंगलवार को इस पद के लिए विधानसभा अध्यक्ष का नाम भी तेजी से चर्चा में आ गया।
आखिर ऐसा क्यों...
एक सवाल का जवाब ऐसा तलाशा जा रहा है कि आखिर क्यों पार्टी के तेजतर्रार नेता डॉ. राजीव बिंदल अध्यक्ष बनने के लिए राजी होंगे। इसके लिए तीन बातें सामने आ रही हैं। चर्चा के मुताबिक पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा के आग्रह पर डॉ. बिंदल सहमत हुए। दूसरी बात यह है कि विधानसभा अध्यक्ष के संवैधानिक पद पर खुलकर राजनीति को लेकर बेडि़यां बंधी हुई हैं।
एक वो उदाहरण भी डॉ. बिंदल के जहन में हो सकता है, जिसमें पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने धूमल सरकार ने वन मंत्री का रुतबा छोड़कर दिल्ली में पार्टी संगठन से जुड़ने का फैसला लिया था। बहरहाल, यह भी कोई गारंटी नहीं है कि नामांकनपत्र दाखिल होते-होते यह समीकरण भी बदल जाएं, क्योंकि इस समय पूर्व सीएम शांता कुमार व प्रेम कुमार धूमल की राय भी मायने रख सकती हैं।
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