हमीरपुर : 1 जनवरी को जहां पूरा प्रदेश नए वर्ष का पर्व मना रहा होगा। वहीं हमीरपुर में शहीद के परिवार ने पिछले 16 वर्षो से नए साल का पर्व नहीं मनाया। कम उम्र में शहादत का जाम पीने वाले शहीद कैप्टन मृदुल शर्मा आज भी जिलावासियों के दिलों पर राज करते हैं। उनकी वीरता व अदम्य साहस की गाथा का गुणगान आज भी किया जाता है।
महज 26 साल की उम्र में आंतकवादियों से लोहा लेते हुए कैप्टन मृदुल शर्मा ने शहादत प्राप्त की थी। सेना मेडल प्राप्त इस जवान की शहादत को याद कर जिलावासी स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। शहीद के नाम पर एक चौक का नामकरण भी किया गया है। इसे शहीद मृदुल चौक के नाम से जाना जाता है। शहीद कैप्टन मृदुल शर्मा का जन्म 24 फरवरी 1978 को गांव सेर, डाकघर महल जिला हमीरपुर के पूर्व कर्नल जेके शर्मा के घर हुआ। उनकी शिक्षा भी हमीरपुर में ही हुई।
मृदुल शर्मा ने वर्ष 1999 में बीएससी कंप्यूटर की पढ़ाई डिग्री कॉलेज से पूरी करने के साथ ही नवंबर महीने में आईएमए देहरादून से कमीशन प्राप्त कर भारतीय सेना 514एडी (आरटी) में ऑफिसर पद पर नियुक्ति पाई। 15 जुलाई 2002 को उनकी पोस्टिंग 51 आरआर जम्मू कशमीर के महार में हुई। मृदुल शर्मा को कपंनी कमांडर बनाया गया था। उन्होंने बहुत कम समय में अपना खूफिया नेटवर्क विकसित किया। 2003 में एक एनकाउंटर में उन्होंने तीन आंतकवादियों को मार गिराया। 2003 में हुए एनकाउंटर में आतंकवादियों से भारी मात्रा में गोला बारूद बरामद किया गया था। इसके लिए उन्हें सेना मेडल दिए जाने की घोषणा की गई।
31 दिसंबर 2003 की रात को कैप्टन मृदुल शर्मा अपनी रेजिमेंट के साथ आंतकवादियों का एनकाउंटर करने जा रहे थे। भारी बारिश, तूफान होने के कारण कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था। रात को चलाए गए इस सर्च अभियान में आतंकवादियों ने अचानक गोलीबारी शुरू कर दी। अपनी टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे कैप्टन मृदुल शर्मा को दुशमनों की गोलियां लग गईं। उनके साथ चल रहा सिग्नल ऑफिसर भी इसमें घायल हो गया। गंभीर घायल हुए मृदुल शर्मा ने एक जनवरी 2004 को अंतिम सांस ली। कैप्टन मृदुल शर्मा महज 26 साल के थे। कम उम्र में सेना मेडल पाने वाले कैप्टन मृदुल शर्मा की यादगार में एक पार्क का निर्माण भी किया गया है।
शहीद कैप्टन मृदुल शर्मा के पिता पूर्व कर्नल जेके शर्मा ने बताया कि जब उनके बेटे का निधन हुआ उस समय व आर्मी में सेवाएं दे रहे थे। कुछ महीनों बाद वह भी एक हादसे का शिकार हो गए। इसमें उन्हें अपनी एक टांग गवानी पड़ी। उन्होंने बताया कि वे शहीद कैप्टन मृदृल शर्मा के नाम पर बाल स्कूल हमीरपुर का नामकरण करने की मांग मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से कर चुके हैं। आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। शहादत के बारह साल बीत जाने के उपरांत भी उन्हें अपंगता की हालत में प्रशासन व सरकार के पास चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि बेटे की पुण्यातिथि पर सेना के जवान उनके घर आते हैं।
मुझे गर्व है अपने बेटे पर
मुझे गर्व है कि मेरे बेटा इस देश की सेवा करते हुए शहीद हुआ। हर नागरिक को इसे पहला कर्तव्य मानते हुए हमेशा देश की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए। यह बोल शहीद कैप्टन मृदृल शर्मा के पिता पूर्व कर्नल जेके शर्मा ने कहे।
बेटा देश के लिए हुआ शहीद
देश की सेवा करते हुए शहीद हुए बेटे की शहादत को याद करते हुए मां सुदेश शर्मा कहती है कि मेरा बेटा देश के लिए शहीद हुआ है। कश्मीर में मुठभेड़ में दुश्मनों को मारकर बेटे ने अपना फर्ज पूरा किया। यह कहते-कहते उनकी आंखे भर आती हैं।
नए साल में आने को कह गया था बेटा
माता सुदेश शर्मा कहती हैं कि आर्मी हैडक्वार्टर से बुलावा आने पर नए साल को आकर शादी की तारीख तय करने की बात कहकर गया था। जाने से पहले वह परिजनों सहित मित्रों व ग्रामीणों से मुलाकात करके गया था। लेकिन वापस आया तो तिरंगे में लिपटकर। यह कहते-कहते सुदेश शर्मा की आंखे फिर नम हो जाती है।