सुंदरनगर: देव भूमि हिमाचल प्राचीन देव संस्कृति के नाम से जाना जाता है। प्रदेश में कई ऐसे देवस्थल हैं। जिनके इतिहास को लेकर आमजन को विश्वास कर पाना मुश्किल हो जाता है। आज हम ऐसे ही एक महाभारत कालीन देवता देव दवाहली के दो शमशान घाट केे मध्य स्थित मूल स्थान ल्याड मंदिर का रहस्य बताने जा रहे हैं। देव दवाहली मंडी के उपमंडल करसोग की नगर पंचायत के गांव ल्याड में ल्याडेश्वर महादेव के नाम से विराजमान है।
हैरानी की बात यह है कि इस मंदिर का निर्माण दो शमशान घाटों के बीचों-बीच किया गया है। इन शमशान घाट में किसी शव का अंतिम संस्कार करने से पहले मंदिर के प्रांगण में बनी जगह पर लाना अनिवार्य है। इसके उपरांत ही शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। मान्यतानुसार करसोग को महाभारत के समय पनचक्र (एकचक्रानगरी) के नाम से जाना जाता था। अपने अगयातवास के दौरान पांडवों ने करसोग पहुंचने पर दैत्य बकासुर के उत्पात से आमजन को दुखी पाया। इस पर स्थानीय लोगों को उनके दुख से निजात दिलवाने के लिए भीम ने तीन दिन तक चले युद्घ में बकासुर का संहार कर लोगों को राहत प्रदान की गई।
वहीं दैत्य बकासुर भगवान शिव का परम भक्त होने के कारण उन्हें शिव द्वारा जनकल्याण के लिए देवत्व प्रदान किया गया। इस उपरांत देव दवाहली ने जनकल्याण के लिए विभिन्न क्षेत्रों में कई स्थानों पर अपना स्थान बनाया। ल्याड मंदिर के आंगन में बकासुर की छाती पाषाण रूप में आजदिन तक मौजूद है। ल्याड मंदिर में 5 शिवलिंग मौजूद है। जिस कारण इसे पंचमुखी महादेव के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस प्राचीन मंदिर में महाभारत के संपूर्ण युद्घ का चित्रण आज भी पत्थरों पर मूर्ति के रूप में मौजूद हैं।
मंदिर में भीम और बकासुर बीच हुए घमासान युद्घ को लेकर कालचक्र और तीन दिन तक चले इस युद्घ पर भीम द्वारा खुद पथर की एक शीला पर तीन रेखाएं उकेरना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद हैं। इस रहस्यमयी मंदिर में भूत,प्रेत,पिशाच आदि काली शक्तियों का विधिविधान से ईलाज कर पूर्ण रूप से हमेशा के लिए छुटकारा किया जाता है।
स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर में बाबा गोरखनाथ भी अपने शिष्यों के साथ भ्रमण करने आए थे। मंदिर में प्रत्येक माह सक्रांति को देवता को जागृत कर लोगों की समस्याओं का हल किया जाता है। इस दिन प्रदेश के विभिन्न स्थानों से लोग आकर देव दवाहली का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं।
वर्ष में एक बार मनाया जाता है देव दवाहली का पर्व बुढ़ी दियाली
देव दवाहली का पर्व वर्ष में मात्र एक बार बड़ी धूमधाम से ममलेश्वर महादेव के सान्धिय में बुढ़ी दियाली के रूप में मनाया जाता है। बुढ़ी दियाली दिपावली से एक माह के बाद आने वाली अमावस्या को शिव मंदिर ममेल में हजारों भक्तों संग मनाया जाता है। इस रात देव दवाहली अपने 9 भाईयों संग अपनी उपस्थिति दर्ज कर देव खेल के माध्यम से भक्तों की समस्याओं का निवारण करते हैं। बुढ़ी दियाली पर देव दवाहली अपने अन्य स्थानों की भांति मुख्य स्थान ल्याड मंदिर से भी ढोल-नगाड़ों और मशालों सहित सैंकड़ों देवलुओं संग ममलेश्वर महादेव मंदिर ममेल पहुंचते हैं। जहां देव दवाहली दो दिन तक निवास करते हैं।
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