नाहन : वीरवार को प्राचीन भूरेश्वर महादेव मंदिर में गयास के अवसर पर देवआस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। रात को चंद्रमा के छिप जाने का इंतजार शुरू हो चुका है। घुप अंधेरे में आस्था की छलांग शिला पर लगनी है।
दोपहर के वक्त शोभायात्रा में देवता पालकी में नहीं, बल्कि देवशक्ति पुजारी में प्रवेश करता है। पारंपरिक श्रृंगार से सुसज्जित होकर पुजारली मंदिर से क्वागधार तक अढ़ाई किलोमीटर यानि एक कोस की यात्रा पुजारी के रूप में देवता ने पूरी की। देवता ने श्रृंगार का विशेष बाना धारण करने के बाद पगड़ी व छत्र पहनने के बाद यात्रा शुरू की। मंदिर में पैदल चढ़ाई के बाद शोभायात्रा पूरी हुई।
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श्रद्धालु पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों पर भूरेश्वर महादेव के जयकारे के नारे लगाते रहे। एक कोस की चढ़ाई के दौरान 7 स्थान चिन्हित किए गए। वहां पर दूध की धार देवरूप पुजारी के ऊपर अर्पित की गई। दूध की आठवीं धार मोड़ पर पहुंचते ही शिला पर चढ़ाकर पूरी की गई। इसके बाद देव स्वरूप पुजारी ने मंदिर में प्रवेश किया। परंपरा के मुताबिक 22 गौत्रों द्वारा अगली रस्मों को शुरू किया गया।
मंदिर में देवता की पगड़ी से छत्र को शिवलिंग पिंडी पर सजा दिया गया। मुख्य कारगार पोलिया द्वारा रस्मों को पूरा करवाया गया। इसके बाद चावरथिया उप गौत्र खेल के कारदार देवता को शक्ति परीक्षण के लिए ज।लती हुई बत्ती दी गई, जिसे देवता ने मुंह में स्वीकार किया। देर रात पुजारी घनघोर अंधेरे में दूध-घी से लिप्त तिरछी शिला पर छलांग लगाकर क्षेत्र की जनता को तीन वरदान देंगे