बिलासपुर (पवन ठाकुर): अगर हौंसले बुलंद हों तो बड़ी से बड़ी चुनौती का भी सामना किया जा सकता है। बेशक ही मौत को मात देने की चुनौती ही क्यों न हो। यही कर दिखाया है सिरमौर के टारूभैला निवासी सतीश तोमर व मंडी के मनीराम ने। ठीक 4:10 मिनट पर एनडीआरएफ के 15 जवानों ने रस्सी खींच कर पहले मनीराम को बाहर निकाला।
इस दौरान सतीश के साथ टनल में एक एनडीआरएफ का जवान मौजूद रहा। ठीक 12 मिनट बाद 4:22 मिनट पर सिरमौर के सतीश को भी टनल से बाहर निकाल लिया गया। सतीश को बाद में निकालने की वजह यह रही कि उसके हौंसले अधिक बुलंद थे। मौत को मात देकर सतीश व मनीराम ने डिस्कवरी चैनल की वह स्क्रिप्ट भी लिख दी है, जिसमें मौत को मात देने के कई किस्से दिखाए जाते हैं।
सोमवार देर दोपहर आखिर 9 दिन बाद वह घड़ी आई, जब सतीश व मनीराम को एनडीआरएफ की टीम निकालने में सफल हो गई। करीब तीन बजे तक ड्रिलिंग का कार्य पूरा होने के बाद एनडीआरएफ के जवान को दोबारा टनल में उतारा गया। इसी दौरान सतीश ने माइक्रोफोन पर सूचना दी कि सब कुछ ठीकठाक है। इसके बाद मजदूरों को बाहर निकालने की कार्रवाई शुरू की गई, जो 5 बजे के आसपास सफल हो गई।
मौके पर मौजूद परिजनों, प्रशासन व टनल के सैंकड़ों मजदूरों की खुशी का ठिकाना उस वक्त नहीं रहा, जब दोनों मजदूर सुरक्षित बाहर निकले। 9 दिन तक गहरे अंधेरे में सतीश व मनीराम ने मौत को कैसे चुनौती दी, इसका खुलासा तो कुछ समय बाद खुद सतीश व मनीराम ही कर पाएंगे। अलबत्ता इतना जरूर है कि उन्होंने 9 दिन तक जमीन के अंदर चार दिन तक तो बिना खाए-पिए रहे खुद को बचाए रखा।
साथ ही यह आसान नहीं था कि जब वह बाहर निकलें तो सीधी तेज रोशनी का सामना करें। 12 सितंबर की रात करीब 8 बजे तीन मजदूरों को नहीं पता था कि लाखों टन मलबा उस टनल को जद में ले लेगा, जिसके निर्माण में वह लगे हुए हैं। कमाल देखिए कि चार दिन तक यह तक किसी को नहीं पता था कि टनल के भीतर असल स्थिति क्या है। केवल यही पता था कि तीन मजदूर फंसे हैं। 16 सितंबर को जब सतीश से संपर्क हुआ तो प्रशासन व बचाव कार्य में लगे श्रमिकों की ऊर्जा में इजाफा हो गया।
हालांकि हिमाचल में इस तरह के सर्च ऑपरेशन खासकर ट्रैकर्स को तलाशने के लिए पहले भी किए जाते रहे हैं। लेकिन गहरे अंधेरे में जमीन से 150 फुट नीचे उस वक्त जिंदगी का दामन थामे रखना, जब आंखों के सामने ही पहाड़ दरक गया हो क्योंकि भीतर हर वक्त निर्माणाधीन टनल में 12 सितंबर की तरह दोबारा मलबा गिरने का डर था। बावजूद इसके मौत को मात दे दी गई।