नाहन : गुप्ता परिवार में आज भी पारंपरिक तौर पर सांझी माता का स्वागत किया जाता है। आज के इस आधुनिक युग में भी भारत देश में पुरानी संस्कृति को कुछ लोगों ने जिन्दा रखा हुआ है। उन्ही कुछ चुनिंदा लोगों में से एक है, नाहन की सुनिता गुप्ता। आज जहां एक और लोग अपने घरों में भगवान की पूजा करते हैं। वहीं सुनीता गुप्ता अपने घर में मिट्टी से सांझी माता के अनेक अंगों का निर्माण कर उन्हें गाय के शुद्ध गोबर से घर की दिवार पर स्थापित करती है।
सांझी माता को मां दूर्गा का रूप माना गया है। अधिकतर घरों में पहले नवरात्र के साथ ही सांझी माता का आगमन हो जाता है। परंतु कुछ घरों में सांझी माता को नवरात्रों से पहले ही घर में विराजमान कर दिया जाता है। सुनिता गुप्ता सांझी माता के निर्माण में लगभग एक माह पूर्व से लग जाती हैं। जिसके लिए वह बेहतर किस्म की चिकनी मिट्टी का प्रयोग करती है। इस मिट्टी से वह अनेक प्रकार के खिलौने, सांझी माता का पूर्ण श्रृंगार, हाथी, घोडे, बैंड-बाजा, फूल-पत्तियां आदि का निर्माण करती है। फिर इन सब में बेहतरीन किस्म के प्राकृतिक रंगो का प्रयोग कर इन्हें सजाया जाता है।
सांझी माता की नौ नवरात्री सुबह-शाम पूजा की जाती है। शाम के समय आपपास की महिलाएं सुनिता के घर पर सांझी माता का कीर्तन करती हैं। शहर में अनेक परिवार के लोग प्रतिदिन सुनीता के घर सांझी माता के दर्शन करने हेतू पधारते हैं। दशहरे के दिन सांझी माता को बहते पानी में जल प्रवाह कर दिया जाता है।
आने वाले वर्ष में परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे, ऐसी कामना की जाती है। यह प्रथा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। जबकि कुछ परिवारों में इसे अभी भी निभाया जाता है। आज आधुनिक युग में लोग अपने घरों में बाजारों से कैलेंडर खरीद कर लगा लेते हैं और केवल औपचारिकता भर पूरी करते हैं।