नाहन : मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स के लिए इंसान की ज़िंदगी की कीमत तुच्छ है। मेडिकल कॉलेज इन डॉक्टर्स के लिए सैरगाह साबित हो रहा है। जब मर्जी होती है तो झोला उठाकर ड्यूटी से नदारद हो जाते हैं। अधिकार इनका वेतन पाने से ज्यादा कुछ नहीं है। कर्तव्य के नाम पर इनकी परफॉरमेंस जीरो है। संवेदनहीनता देखिए, 11 घंटे तक मरीज को देखने के लिए एक भी डॉक्टर नहीं था। मेडिकल कॉलेज नाहन की कथित लापरवाही से हरिपुरधार के एक युवक की जान चली गई। मरीज रात भर दर्द से कहराता रहा। परिजन नर्सों से डॉक्टर को बुलाने की मिन्नते करते रहे, मगर सुबह 10 बजे तक मरीज की सुध लेने कोई भी डॉक्टर नहीं पहुंचा। मंगलवार सुबह जब 10 बजे मरीज को देखने डॉक्टर पहुंचे तो मरीज अंतिम सांसे गिन रहा था।
डॉक्टर्स के पहुंचने के कुछ मिनट बाद ही मरीज ने दम तोड़ दिया। हरिपुरधार निवासी (45) धर्मपाल को सोमवार देर शाम अचानक पेट में तेज दर्द उठी। परिजन उसे तुरंत सामुदायिक अस्पताल संगड़ाह ले गए। मरीज की हालत की गंभीरता को देखते हुए संगड़ाह से डॉक्टर्स ने मरीज को रैफर करके एम्बुलेंस से मेडिकल कॉलेज नाहन भेज दिया। एम्बुलेंस ने मरीज को रात करीब 11 बजे नाहन पहुंचाया।
मरीज के परिजनों का आरोप है कि नाहन पहुंचने पर इलाज के नाम पर डॉक्टर्स ने मरीज का एक्स-रे किया। ड्रिप चढ़ाने के बाद इंजेक्शन लगाए और डॉक्टर्स चले गए। परिजनों का आरोप है कि रात को मरीज की तबीयत जब ज्यादा बिगड़ गई तो वह नाईट ड्यूटी पर तैनात नर्सों से डॉक्टर्स को बुलाने की मिन्नते करते रहे।
मरीज की खराब हालत को देखते हुए वह उसे चंडीगढ़ रैफर करवाना चाहते थे। मगर सोमवार रात 11 बजे से लेकर मंगलवार सुबह 10 बजे तक मरीज को देखने वहां पर कोई भी डॉक्टर नहीं पहुंचा। करीब 10 बजे जब डॉक्टर पहुचें तो धर्मपाल अंतिम सांसे गिन रहा था। करीब 10 बजकर 30 मिनट पर धर्मपाल ने दम तोड़ दिया। अगर डॉक्टर्स लापरवाही न दिखाते तो मरीज की जान बचाई जा सकती थी। मृतक धर्मपाल के पुत्र निखिल कुमार ने आरोप लगाए कि डॉक्टर्स की लापरपाही के कारण उनके पिता की मौत हुई है। यदि डॉक्टर रात को ड्यूटी पर होते तो उनके पापा की जान बच सकती थी।
अखिल ने बताया कि रात 11 बजे से सुबह 10 बजे तक करीब 11 घंटे तक उनके पिता अस्पताल में बिना इलाज के तड़पते रहे। निखिल ने बताया कि रात को अपने पापा की बिगड़ती हालत को देखते हुए उन्हे चंडीगढ़ रैफर करवाना चाहते थे। मगर वहां पर कोई भी डॉक्टर उपस्थित नहीं था। वह नर्सों से भी डॉक्टर्स को बुलाने की मिन्नते करते रहे मगर कोई फायदा नहीं हुआ।
उधर, इस प्रकरण के बारे में जब मेडिकल कॉलेज के सुप्रिडेंट डॉक्टर डीडी शर्मा से पक्ष जानने के लिए फ़ोन किया गया तो उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया। जब एमबीएम प्रतिनिधि स्वयं इस गंभीर मामले पर पक्ष जानने के लिए अस्पताल पहुंचा तो एमएस ऑफिस में मीटिंग चल रही थी। काफी इंतज़ार के बाद चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर डीडी शर्मा का बयान हैरानी जनक था। उन्हें यही पता नहीं था की किस मरीज की मृत्यु हुई है।
जब मीटिंग में मौजूद फीमेल स्टाफ ने उन्हें इसकी जानकारी दी तब उन्हें मामले का पता चला। उस पर तुर्रा देखिए की मेडिकल अधीक्षक का अनभिज्ञता से जवाब मिला की “मैं मजबूर हूँ मेरे पास डॉक्टर्स की बेहद कमी है”। एक डॉक्टर को ओपीडी देखनी पड़ती है तो एक एमर्जेन्सी ड्यूटी करता है। वह एक घंटे के भीतर छानबीन कर मामले की जानकारी देंगे।